बिलासपुर उच्च न्यायालय : शिक्षिका ने⁵ वेतनमान के लिए खुद किया चीफ जस्टिस की बेंच में पैरवी , जीता मुकदमा….!

बिलासपुर /(शिखर दर्शन)// बिना किसी अधिवक्ता के खुद ही शिक्षिका और उनके पति ने मुख्य न्यायाधीश की डिवीजन बेंच में बहस करते हुए तर्क प्रस्तुत किए ।शिक्षिका और उनके पति के तर्क को जायज ठहराते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की डीविजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को निरस्त कर दिया ।
क्रमन्नति वेतनमान का लाभ नहीं मिलने पर शिक्षिका ने खुद ही कानूनी लड़ाई लड़ी। इसमें उनके पति का भी सहयोग उन्हें मिला । बिना किसी अधिवक्ता के खुद ही शिक्षिका और उनके पति ने मुख्य न्यायाधीश की डिवीजन बेंच में बहस कर तर्क प्रस्तुत किया । शिक्षिका और उनके पति के तर्क को जायज ठहराते हुए चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को निरस्त कर दिया है । बेंच ने शिक्षिका को क्रमन्नति वेतनमान सहित सभी आर्थिक लाभ का हकदार माना है ।
जानकारी के अनुसार सूरजपुर जिले के नारायणपुर के प्राइमरी स्कूल में सहायक शिक्षिका सोना साहू की नियुक्ति कोरिया जिले के सोनहत प्राइमरी स्कूल में सहायक शिक्षिका के पद पर 1 अगस्त 2005 को हुई थी । बिना किसी बाधा के वे लगातार नौकरी कर रही थी । इस बीच वित्त एवं योजना विभाग ने 1 जुलाई 2007 को सर्कुलर जारी कर कर्मचारियों को क्रम उन्नति वेतनमान देने के संबंध में दिशा निर्देश जारी किया । इसके बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास ने भी 2 नवंबर 2007 को सर्कुलर जारी किया गया था । इसके तहत 10 वर्ष की सेवा पूरी करने वाले शिक्षकों को क्रमोन्नति वेतनमान देने का निर्णय लिया गया । वर्ष 2013 में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने एक अलग सर्कुलर आदेश जारी किया । इसके अंतर्गत शिक्षा विभाग और पंचायत के अधीन कार्यरत और 8 वर्ष की सेवा पूरी कर चुके शिक्षकों को समान वेतनमान दिया जाना था । इसके बाद 14 नवंबर 2014 को एक आदेश जारी कर 2 नवंबर 2013 को जारी सर्कुलर को निरस्त कर दिया गया ।
10 वर्ष की सेवा पूरी करने पर मिलना था क्रमोन्नति वेतनमान
सामान्य प्रशासन विभाग में 2 मार्च 2017 को आदेश जारी कर दिशा निर्देश तय किया । इसके अनुसार 10 वर्ष की सेवा पूरी करने पर पहले क्रम उन्नति वेतनमान और 20 वर्ष की सेवा पूरी करने पर दूसरा क्रम उन्नति वेतनमान दिया जाना था ।इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने सर्कुलर भी जारी किया था ।
विभाग ने अस्वीकार कर दी शिक्षिका की अर्जी
याचिकाकर्ता ने 10 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद क्रमोन्नति वेतनमान की मांग करते हुए संबंधित अधिकारियों के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया । लेकिन उनके आवेदन पर विचार नहीं किया गया । इसके बाद वर्ष 2019 में उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका लगाई । हाईकोर्ट ने उन्हें विस्तृत आवेदन देने और विभाग को आवेदन का निराकरण करने के निर्देश देते हुए याचिका निराकृत कर दी थी ।
अर्जी स्वीकार की पर एक माह पश्चात बदल दिया आदेश
याचिकाकर्ता ने 16 दिसंबर 2019 को आवेदन प्रस्तुत किया , विभाग ने 15 जनवरी 2020 को क्रमोन्नति वेतनमान देने का आदेश जारी किया । लेकिन 29 फरवरी 2020 को जनपद सीईओ ने आदेश को इस आधार पर निरस्त कर दिया की याचिकाकर्ता ने 30 अप्रैल 2013 के बाद 10 वर्ष की सेवा अवधि पूरी की है। इसलिए वह क्रमोन्नति वेतनमान की हकदार नहीं है । इस आदेश के खिलाफ अपील की गई थी ।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की बेंच ने याचिकाकर्ता शिक्षिका को वकालत का अनुभव भले ही नहीं था लेकिन शिक्षिका और उनके पति को अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया । मामले में 12 दिसंबर 2023 को फैसला सुरक्षित रखा गया था । कल बुधवार को फैसला सार्वजनिक किया गया । जिसमें चीफ जस्टिस की बेंच में शिक्षिका को वेतनमान सहित सभी आर्थिक लाभ का हकदार माना है ।