झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन: दिशोम गुरुजी ने 81 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस, हेमंत बोले- आज मैं शून्य हो गया

राज्य में सात दिन का राजकीय शोक, झारखंड की राजनीति में एक युग का अंत
रांची/नई दिल्ली (शिखर दर्शन)// झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन का आज सुबह निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे और दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में इलाजरत थे। अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें सुबह 8:56 बजे मृत घोषित किया। वे लंबे समय से किडनी की बीमारी और ब्रोंकाइटिस से पीड़ित थे और पिछले एक महीने से वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे।

उनके निधन की पुष्टि उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने की। भावुक होते हुए हेमंत ने कहा— “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।” उनके निधन से पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई है और झारखंड सरकार ने सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है।

आदिवासी आंदोलन के अग्रदूत रहे ‘दिशोम गुरुजी’
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) के हजारीबाग जिले के नेमरा गांव में हुआ था। वे आदिवासी समाज के सबसे प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते थे। उन्हें ‘दिशोम गुरु’ और ‘गुरुजी’ के नाम से लोग सम्मानपूर्वक पुकारते थे। उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों और शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की और 1970 के दशक में ‘धनकटनी आंदोलन’ जैसे कई आंदोलनों का नेतृत्व किया।

झारखंड राज्य निर्माण में निभाई थी निर्णायक भूमिका
शिबू सोरेन ने बिहार से अलग झारखंड राज्य की मांग को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाया और उसके निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे तीन बार (2005, 2008, 2009) झारखंड के मुख्यमंत्री बने, हालांकि एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। उन्होंने केंद्र सरकार में कोयला मंत्री का पद भी संभाला था।
पिता की हत्या बनी राजनीति में आने की वजह

शिबू सोरेन के राजनीतिक जीवन की शुरुआत बेहद भावनात्मक रही। उनके पिता शोभराम सोरेन की हत्या ने उन्हें आदिवासी समुदाय के हक और न्याय के लिए लड़ने के रास्ते पर ला खड़ा किया। इसके बाद उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना कर राज्य के आदिवासी समुदाय को संगठित किया और उनके हक की लड़ाई लड़ी।
अंतिम संस्कार की तैयारी, झारखंड में शोक का माहौल
शिबू सोरेन के निधन के बाद झारखंड में शोक की लहर है। जेएमएम कार्यकर्ता और समर्थक बेहद भावुक हैं। अंतिम संस्कार से जुड़ी जानकारी जल्द साझा की जाएगी। शिबू सोरेन का जाना न केवल झारखंड बल्कि देश की राजनीति के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनका जीवन आदिवासी संघर्ष, सामाजिक न्याय और राजनीतिक समर्पण की मिसाल बन गया है।