खाद संकट को लेकर किसानों का फूटा गुस्सा, NH-930 पर चक्काजाम, 14 गांवों के किसानों ने रोकी गाड़ियांखाद की आपूर्ति नहीं हुई तो आंदोलन और उग्र होगा: किसान नेता अनिल सुथार

बालोद (शिखर दर्शन) // जिले में गंभीर खाद संकट से परेशान किसानों का धैर्य रविवार को जवाब दे गया। बालोद के कुसुमकसा गांव के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 930 पर 14 गांवों के सैकड़ों ग्रामीण किसान अचानक सड़क पर उतर आए और चक्काजाम कर दिया। इस आंदोलन के चलते राजनांदगांव–बालोद–भानुप्रतापपुर मार्ग पूरी तरह बाधित हो गया, जिससे दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लग गईं और आमजन को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
प्रदर्शन कर रहे किसान खाद की पर्याप्त और समय पर आपूर्ति की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को खाद संकट के बारे में सूचित कर चुके हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकाला गया। आखिरकार, लगातार अनदेखी से तंग आकर उन्हें सड़क पर उतरना पड़ा।
किसानों का आरोप है कि खाद वितरण में गड़बड़ी और लापरवाही की वजह से उनकी बुवाई प्रभावित हो रही है, जिससे धान का उत्पादन संकट में पड़ सकता है। प्रदर्शन स्थल पर पहुंचे एसडीएम सुरेश साहू, डीएमओ सौरभ भारद्वाज और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने मौके की स्थिति को संभालने की कोशिश की और किसानों से बातचीत कर उन्हें समझाने में जुटे हैं। हालांकि, अभी भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है।
सरकार की नीतियों पर किसान नेता का हमला
किसान नेता एवं पूर्व जनपद सदस्य अनिल सुथार ने प्रदेश सरकार की कृषि नीति को विफल करार देते हुए कहा, “यह सरकार की नाकाम कृषि नीति का नतीजा है कि किसानों को समय पर खाद नहीं मिल पा रहा। ऐसा लग रहा है जैसे सरकार जानबूझकर किसानों को खाद से वंचित कर रही है, ताकि उत्पादन घटे और सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कम धान खरीदना पड़े।”
उन्होंने प्रशासन से मांग की कि सोसायटियों में तत्काल खाद की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए, ताकि किसान समय पर बुवाई कर सकें और फसल पर कोई विपरीत असर न पड़े।
प्रशासन कर रहा समाधान की कोशिश
प्रशासनिक अधिकारियों ने किसानों को आश्वासन दिया है कि जल्द ही खाद की आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी और किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान निकाला जाएगा। वहीं, किसानों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र समाधान नहीं किया गया, तो आंदोलन और भी उग्र रूप ले सकता है।
फिलहाल राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थिति सामान्य करने के प्रयास जारी हैं, लेकिन किसानों की नाराजगी और खाद संकट की गंभीरता को देखते हुए यह मुद्दा अब राजनीतिक रूप भी लेता नजर आ रहा है।