ज्योतिषी

हनुमान जन्मोत्सव विशेष संपादकीय….

तृष्णा रूपी सुरसा से विजय का रहस्य: श्री हनुमान जी से सीखें संतोष का मंत्र

( राजेश निर्मलकर )

हनुमान जन्मोत्सव पर केवल आराधना और उत्सव नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और आत्मसंधान का भी समय है। श्री हनुमान जी की लंका यात्रा केवल एक भौगोलिक यात्रा नहीं थी, वह आत्मबोध की यात्रा थी। इस यात्रा में उन्होंने समाज को मानवीय मूल्यों, संतुलन और संतोष का मार्ग दिखाया।

वर्तमान जीवन में तृष्णा ने सुरसा का रूप ले लिया है — विशाल, असीम और निरंतर बढ़ती हुई। आज की दौड़ में हर व्यक्ति सुरसा की तरह अंतहीन आकांक्षाओं से घिरा हुआ है। यह तृष्णा ही है जो जीवन के उद्देश्य को निगलने का प्रयास करती है, मन की शांति को डस लेती है, और अंततः आत्मा को विकल कर देती है।

हनुमान जी जब लंका की ओर प्रस्थान करते हैं, उन्हें मार्ग में सुरसा मिलती है। वह समुद्र में बैठी एक ऐसी शक्ति है जो उनके मार्ग को रोकती है। लेकिन यह शक्ति केवल एक राक्षसी नहीं थी, वह एक प्रतीक थी — तृष्णा का प्रतीक, जो हमें हर कदम पर रोकती है, विचलित करती है, और अपने भीतर समा लेने का प्रयास करती है।

तृष्णा का द्विगुणात्मक गणित

सुरसा हर बार अपना मुख फैलाती है, और हनुमान जी उससे दुगुना आकार धारण कर लेते हैं।
“जस जस सुरसा बदन बढ़ावा, तासु दुगुन कपि रूप दिखावा।”
यही तृष्णा का स्वभाव है। यदि किसी के पास 50 एकड़ ज़मीन है, तो वह 100 चाहता है — कभी 60 नहीं। तृष्णा का स्वभाव है ‘द्विगुण’, वह संतोष नहीं जानती।

जब सुरसा का मुख सौ योजन तक फैल जाता है — एक विशाल खाई बन जाता है — तब हनुमान जी अचानक लघु रूप धारण कर लेते हैं और उसके मुख में प्रवेश कर बाहर निकल जाते हैं।
यह केवल एक चमत्कारी घटना नहीं, जीवन का सूत्र है।

समाधान का रहस्य: संतुलन और संतोष

लाभ और हानि — ये सुरसा के जबड़े हैं। उनके बीच नर्तन करती है तृष्णा। जीवन लाभ-हानि के द्वंद्व में फंस जाता है और हम इस द्वंद्व में अपना मार्ग भूल बैठते हैं।
“तब तव बदन पैठहु आई, सत्य कहहु मोहि जानि दे माई।”
हनुमान जी ने सुरसा से ममता के स्वर में कहा — “मैं राम का कार्य कर रहा हूँ, सीता माता की सुधि लेकर जा रहा हूँ। मुझे जाने दो।”
यह भावनात्मक दृष्टिकोण था — भारत में नारी ममता का स्वरूप मानी जाती है। हनुमान जी ने तृष्णा को युद्ध से नहीं, भाव से जीता।

यही श्री हनुमान जी का संदेश है — तृष्णा को मारना नहीं, जीतना है।
“संत योजन जब आनन कीन्ह, अति लघु रूप पवन सुत लीन्हा।”
उन्होंने लघुता का मार्ग अपनाया, अहंकार नहीं किया, बल नहीं दिखाया, संतोष से तृष्णा को पार किया।

आज के लिए हनुमान जी का संदेश

इस हनुमान जन्मोत्सव पर श्री हनुमान जी हमें सिखा रहे हैं कि तृष्णा से विजय पाने का मार्ग ‘संतोष’ है।
जहाँ तृष्णा का शोर बढ़ता है, वहाँ संतोष का मौन ही समाधान है।
हमारा जीवन तब ही शांति पाएगा, जब हम लाभ-हानि की सुरसा के जबड़ों के मध्य संतुलन के बिंदु पर ठहरना सीखें।
हनुमान जी ने यही मार्ग दिखाया — एक बिंदु ऐसा होता है जहाँ इच्छाएँ नहीं, उद्देश्य रहता है। जहाँ चाह नहीं, चरित्र रहता है।

निष्कर्ष

हनुमान जन्मोत्सव केवल एक पर्व नहीं, एक विचार है।
यह वह अवसर है जब हम श्री हनुमान जी के आत्मबल, विवेक और संतोष के संदेश को आत्मसात करें।
तृष्णा के मुख में फँसे समाज को आज श्री हनुमान जैसे संतुलनशील, निस्वार्थ और उद्देश्यनिष्ठ चरित्र की आवश्यकता है।

जय सियाराम। जय श्री हनुमान।

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