दिल्ली

गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, छह आरोपियों को किया बरी , कहा- ” बिना ठोस सबूत किसी को दोषी न ठहराया जाए “

नई दिल्ली (शिखर दर्शन) // सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामले में छह आरोपियों को बरी कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि केवल घटनास्थल पर मौजूद होने या वहां से गिरफ्तार होने मात्र से यह साबित नहीं होता कि व्यक्ति गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा था।

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट के 2016 के फैसले को अस्वीकार कर दिया, जिसमें निचली अदालत द्वारा बरी किए गए छह लोगों को फिर से दोषी करार दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल उपस्थित होने के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि उनके खिलाफ ठोस सबूत न हों।

निचली अदालत का फैसला बहाल

इस मामले में सभी 19 आरोपियों को पहले ट्रायल कोर्ट ने निर्दोष करार दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने उनमें से छह को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के 2003 के फैसले को बहाल करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों की संलिप्तता साबित करने में असफल रहा।

कोई ठोस सबूत नहीं, सिर्फ मौजूदगी आधार नहीं

शीर्ष अदालत ने कहा कि दंगों जैसी परिस्थितियों में लोग जिज्ञासा के कारण घटनास्थल पर पहुंच सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे अपराध में शामिल थे। अदालत ने पुलिस की कार्रवाई का भी जिक्र किया और कहा कि गोलीबारी के दौरान कई लोग भाग सकते हैं, जिससे निर्दोष व्यक्ति भी संदेह के घेरे में आ सकता है।

भीड़ में शामिल होने का कोई प्रमाण नहीं

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि आरोपी गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा थे या उन्होंने किसी हिंसक गतिविधि में भाग लिया था। साथ ही, उनके पास से कोई हथियार या विध्वंसक सामग्री भी बरामद नहीं हुई थी।

हाईकोर्ट का फैसला असंगत

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को अनुचित ठहराते हुए कहा कि केवल मौके पर उपस्थिति को दोषी ठहराने का आधार नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि सामूहिक हिंसा के मामलों में निर्दोष व्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना न्यायिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संदेह के आधार पर दोष सिद्धि नहीं हो सकती और दोषसिद्धि के लिए ठोस व प्रत्यक्ष साक्ष्यों की आवश्यकता होती है।

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