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कुंभ मेला: आस्था और परंपरा का महासंगम, जानें इसका इतिहास और ज्योतिषीय महत्व

कुंभ मेले की शुरुआत कब और किसने की? जानें प्रयागराज के महाकुंभ को सबसे भव्य क्यों माना जाता है।

कुंभ मेला: करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक

कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे पवित्र और विशाल पर्व है, जो हर 12 साल में चार प्रमुख तीर्थस्थलों—हरिद्वार (उत्तराखंड), प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), उज्जैन (मध्य प्रदेश), और नासिक (महाराष्ट्र)—में आयोजित किया जाता है। इन चारों स्थलों पर कुंभ मेले का आयोजन पौराणिक और ज्योतिषीय मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। इनमें प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित होने वाला महाकुंभ सबसे भव्य और महत्वपूर्ण माना जाता है। संगम वह पवित्र स्थान है, जहां गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती नदियों का मिलन होता है।

प्रयागराज का महाकुंभ: विशेष आयोजन
इस बार प्रयागराज में कुंभ स्नान 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी, महाशिवरात्रि तक चलेगा। लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान कर अपनी आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की कामना करेंगे। कुंभ मेले की विशेषता केवल इसका धार्मिक महत्व नहीं, बल्कि इसका ऐतिहासिक और ज्योतिषीय पहलू भी है, जो इसे अद्वितीय बनाता है।

कुंभ मेले का पौराणिक और ऐतिहासिक आधार
कुंभ मेले का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन इसकी शुरुआत कब और किसने की, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता। मध्यकालीन ग्रंथों और इतिहासकारों के अनुसार, राजा हर्षवर्द्धन के शासनकाल में प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन हुआ था। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में इसका उल्लेख किया है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ का संबंध समुद्र मंथन की कथा से है। जब देवताओं और असुरों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया, तो अमृत कलश को लेकर संघर्ष हुआ। इस दौरान अमृत की बूंदें चार स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक—में गिरीं। इन स्थानों को पवित्र मानते हुए यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है।

ज्योतिषीय महत्व और आयोजन का समय
कुंभ मेले का आयोजन खगोलीय घटनाओं के आधार पर होता है। जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में आता है, तब हरिद्वार में कुंभ आयोजित होता है। इसी तरह, प्रयागराज में कुंभ तब होता है, जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं। नासिक में कुंभ बृहस्पति के सिंह राशि में प्रवेश करने पर आयोजित होता है, जबकि उज्जैन में यह तब होता है जब बृहस्पति सिंह राशि और सूर्य मेष राशि में होते हैं।

गंगा और अन्य नदियों का विशेष महत्व
कुंभ मेले का आयोजन मुख्य रूप से गंगा नदी के किनारे होता है। हरिद्वार और प्रयागराज गंगा के पवित्र तट पर स्थित हैं, जबकि नासिक में गोदावरी नदी (जिसे दक्षिण गंगा कहा जाता है) और उज्जैन में क्षिप्रा नदी (जिसे उत्तरी गंगा कहा जाता है) पर कुंभ आयोजित होता है। इन नदियों में स्नान को पापों से मुक्ति और आत्मा की शुद्धि का माध्यम माना जाता है।

प्रयागराज का महाकुंभ: भव्यता और आस्था का पर्व
प्रयागराज का महाकुंभ अपनी भव्यता और विशालता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु, साधु-संत, और पर्यटक जुटते हैं। कुंभ मेला न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और आस्था का जीवंत चित्रण भी है।
कुंभ मेला भारतीय परंपराओं और मान्यताओं का ऐसा पर्व है, जो सदियों से करोड़ों लोगों की आस्था को एक सूत्र में बांधे हुए है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का गौरवशाली उत्सव है, जो विश्व भर में अपने अनुपम स्वरूप के लिए जाना जाता है।

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