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नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व का शुभारंभ, चार दिनों तक व्रती करेंगे सूर्य देव की आराधना

बिलासपुर ( शिखर दर्शन ) // आज मंगलवार से लोक आस्था के महापर्व छठ का शुभारंभ नहाय-खाय के साथ हो गया है। इस चार दिवसीय पर्व में व्रती महिलाएं तालाब और नदी में स्नान कर, कद्दू की सब्जी और चावल ग्रहण कर व्रत का संकल्प लेंगी। ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र प्रसाद को ग्रहण करने से साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

नहाय-खाय के साथ छठ व्रत की शुरुआत

नहाय-खाय के दिन व्रती महिलाएं स्नान के बाद नए कपड़े धारण कर पूजा-अर्चना करती हैं। खासकर पीले और लाल रंग के वस्त्रों का महत्व इस पूजा में विशेष होता है, हालांकि अन्य रंगों के कपड़े भी पहने जा सकते हैं। स्नान के उपरांत व्रती चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस भोजन को तैयार करते समय पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है; इसे मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से पकाया जाता है।

व्रती महिलाओं के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही परिवार के अन्य सदस्य इस भोजन को ग्रहण करते हैं। इस दिन नहाने के बाद सात्विक भोजन करने को नहाय-खाय कहा जाता है, जो व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

सूर्य देव को समर्पित है छठ पूजा

छठ पर्व सूर्य देव को धन्यवाद देने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। मान्यता है कि सूर्य देव की बहन, छठी मैया की पूजा करने से संतान और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, छठ पूजा से साधकों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है और उनके पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

चार दिनों का कठिन व्रत

छठ पूजा को हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व माना गया है, जो चार दिनों तक चलता है। इस दौरान भक्त कठिन व्रत का पालन करते हुए सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करते हैं। पर्व का प्रारंभ 5 नवंबर को नहाय-खाय से हो गया है, जिसके बाद 6 नवंबर को खरना मनाया जाएगा। 7 नवंबर को संध्या के समय व्रती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगे, जबकि पर्व का समापन 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पण के साथ होगा।

छठ पूजा की पौराणिक कथा

छठ पूजा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा द्वापर युग की है, जिसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। भगवान कृष्ण के परामर्श पर साम्ब ने सूर्य देव की आराधना की और उनके आशीर्वाद से रोगमुक्त हो गए। इसके बाद साम्ब ने सूर्य देव के सम्मान में 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कोणार्क का सूर्य मंदिर है, जो ओडिशा में स्थित है। इसके अलावा बिहार के औरंगाबाद में देवार्क सूर्य मंदिर भी छठ पूजा के इतिहास का साक्षी है।

समाज में विशेष स्थान

छठ पूजा का यह पर्व श्रद्धा, भक्ति और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान अनुयायी कठिन व्रत रखते हुए सूर्य देव की कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं। इस पावन पर्व को लेकर देशभर में आस्था का अद्भुत माहौल देखने को मिलता है।

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