ज्ञानवापी पर ASI की रिपोर्ट में बड़े खुलासे…. 12 शिलालेखों में मिले प्रमाण…. मस्जिद से पहले वहां मौजूद था विशाल हिंदू मंदिर !


प्रयागराज //(शिखर दर्शन )//ज्ञानवापी परिसर पर स्थित मस्जिद का आखिरकार अदालत में लंबी बहस के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ASI की रिपोर्ट सामने आ गई है । ASI ने GPR तकनीक के आधार पर किए गए सर्वे के बाद तैयार रिपोर्ट में बताया कि मस्जिद के निर्माण से पहले उस जगह पर एक बड़ा और भव्य विशाल हिंदू मंदिर था । इसके लिए बतौर प्रमाण उन्होंने 32 ऐसे शिलालेखों का जिक्र किया जो पुराने हिंदू मंदिरों के हैं ।

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के सर्वे के बाद सौंपी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में जो मस्जिद का ढांचा है इसकी पश्चिमी दीवार पहले के बड़े हिंदू मंदिर का हिस्सा है । और पिलहर के नक्काशीयों को मिटाने की कोशिश की गई है । इसके अलावा मंदिर में पहले एक बड़ा केंद्रीय कक्ष था और उत्तर दक्षिण पूर्व और पश्चिम में भी कम से कम एक कक्ष था । इनमें से तीन कक्ष उत्तर दक्षिण और पश्चिम के अवशेष अभी भी मौजूद हैं । लेकिन पूर्व में स्थित कक्ष के अवशेषों का पता नहीं लगाया जा सका है ।
वह विशेष क्षेत्र पत्थर के फर्श वाले एक मंच के नीचे ढका हुआ है । जो मंदिर का केंद्रीय कक्ष था वह आज मस्जिद का केंद्रीय कक्ष है । सजाए गए मेहराबों के निचले सिरों पर उतारी गई जानवरों की आकृतियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। और गुंबद के अंदरूनी हिस्से को ज्यामिति डिजाइनों से सजाया गया था ।
मंदिर के इस केंद्रीय कक्ष का मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम से था । इसे पत्थर की चिनाई से बंद कर दिया गया था । प्रवेश द्वार को जानवरों ,पक्षियों की नक्काशी से सजाया गया था । प्रवेश द्वार को ईंटों पत्थरों से बंद कर दिया गया था । इस प्रवेश द्वार की चौखट पर उक्कीरी गई किसी पक्षी की आकृति के अवशेष पाए गए हैं ।
पश्चिमी कक्ष का पूर्वी आधा भाग अभी भी मौजूद है । जबकि पश्चिम का आधा हिस्सा नष्ट हो चुका है । पश्चिम का एक गलियारा उत्तर दक्षिण कक्षा से जुड़ा हुआ है । जो मूल रूप से हिंदू मंदिर का हिस्सा थे उनके पुनः उपयोग के लिए उन पर उकेरी गई आकृतियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया और उनकी जगह फूलों के डिजाइन लगा दिए गए ।
मौजूदा और पहले से मौजूद ढांचे से 34 शिलालेख पाए गए है। इनमें से 32 शिलालेखों की प्रतिकृतियां बनाई गई शिलालेख देवनागरी तेलुगू और कन्नड़ लिपियों में पाए गए हैं । देवताओं के तीन नाम जनार्दन रुद्र और उमेश्वर भी पाए गए हैं । महामुक्ति मंडप जैसे शब्दों का उल्लेख तीन शिलालेखों में किया गया है । मस्जिद में शिलालेखों के फिर से किए गए उपयोग से पता चलता है की मस्जिद के निर्माण में पहले की संरचनाओं को नष्ट कर दिया गया था । और इसके हिस्सों का पुनः उपयोग किया गया था ।
एक पत्थर पर अंकित शिलालेख से पता चलता है कि औरंगजेब के शासनकाल 1676 से 1677 के दौरान मस्जिद का निर्माण किया गया था ।शिलालेख में यह भी कहा गया है कि 1792 से 1793 में मस्जिद की मरम्मत कराई गई थी । ASI ने औरंगजेब की जीवनी का हवाला देते हुए कहा कि 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब ने कथित तौर पर काशी में विश्वनाथ के मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था ।
ASI का कहना है कि एक तहखाना में फेंकी गई मिट्टी के नीचे हिंदू देवताओं की मूर्तियां और नक्काशीदार वास्तु शिल्प अवशेष दबे हुए पाए गए हैं । ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (GPR) प्रौद्योगिकी के उपयोग पर ASI का कहना है कि उत्तरी हाल में GPR सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि उत्तरी दरवाजे की ओर फर्श में एक गुफा नुमा आकृति थी । दक्षिण गलियारे में तहखाना के स्तर की ओर एक आयताकार मार्ग एक दरवाजे या एक प्रकार का प्रवेश मार्ग भी था । गलियारों से सटे हुए चौड़े तहखाना भी पाए गए हैं । एक तहखाने में 2 मीटर चौड़ा कुआं ढाका हुआ भी मौजूद है ।
कला और वास्तुकला के आधार पर पूर्व मौजूदा ढांचे को एक हिंदू मंदिर के रूप में पहचाना जा सकता है । ऐसा प्रतीत होता है की मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के शासनकाल के 20वें वर्ष में किया गया था।और पहले से मौजूद मंदिर 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान नष्ट कर दिया गया प्रतीत होता है । पहले से मौजूद मंदिर के एक हिस्से को फिर से बनाया गया था । और मस्जिद में पुनः उपयोग किया गया है । आपको बता दें कि 1991 में लॉर्ड विश्वेश्वर नाथ का मुकदमा दाखिल करके पहली बार पूजा पाठ की अनुमति मांगी गई । इसके बाद 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश पारित किया था ।