रक्षाबंधन पर बाबा महाकाल को विश्व में सबसे पहले बांधी गई राखी, पगड़ी पहनकर हुआ अद्भुत श्रृंगार, यहां करें दर्शन

विशेष संवाददाता छमू गुरु की रिपोर्ट:

उज्जैन ( शिखर दर्शन ) // श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा और रक्षाबंधन का पावन संयोग… अलसुबह जैसे ही घड़ी ने 3 बजाए, श्री महाकालेश्वर मंदिर के कपाट खुलते ही पूरी नगरी “जय जय श्री महाकाल”, “हर हर महादेव”, “हर हर शंभू” और “ॐ नमः शिवाय” के जयघोष से गूंज उठी। हवा में घुली चंदन और भस्म की सुगंध, मंदिर की घंटियों की मधुर ध्वनि और श्रद्धालुओं के उत्साह से पूरा वातावरण मानो स्वर्गिक हो उठा।
इस पावन अवसर पर विश्व में सबसे पहले बाबा महाकाल को राखी बांधी गई। गर्भगृह में सबसे पहले जल से भगवान का अभिषेक हुआ, फिर दूध, दही, घी, शहद और फलों के रस से बने पंचामृत से विधि-विधानपूर्वक पूजन संपन्न हुआ। रजत पात्रों में सुगंधित गंगाजल की धार जब शिवलिंग पर पड़ी, तो वातावरण में भक्ति और आनंद की तरंगें फैल गईं।
रक्षाबंधन की सुबह भगवान महाकाल का श्रृंगार अद्वितीय था — मस्तक पर भव्य पगड़ी, शेषनाग का रजत मुकुट, रजत की मुण्डमाल, रुद्राक्ष की माला और सुगंधित पुष्पों से सजी हुई भव्य माला। ड्रायफ्रूट से सजाया गया आकर्षक श्रृंगार हर श्रद्धालु की आंखों को मोहित कर रहा था। बाबा को फल और मिष्ठान का विशेष भोग अर्पित किया गया।

भस्म आरती के समय गर्भगृह में दीपों की लौ झिलमिला रही थी, भस्म चढ़ते ही बाबा का अलौकिक स्वरूप और निखर उठा। दूर-दूर से आए श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर इस दृश्य को निहारते रहे। कोई हाथ जोड़कर आंखें मूंदे खड़ा था, तो कोई नंदी महाराज के कान में अपनी मनोकामनाएं फुसफुसा रहा था। हर चेहरे पर भक्ति और भावनाओं का सागर उमड़ रहा था।
जैसे ही आरती संपन्न हुई, श्रद्धालु “जय महाकाल” के गगनभेदी नारे लगाते हुए बाहर निकले। वह क्षण ऐसा था मानो स्वयं कैलाश पर महादेव के दरबार में उपस्थित होकर उनका आशीर्वाद पा लिया हो।