राष्ट्रीय

उत्तराखंड में कुदरत का कहर: 2004 से 2025 तक आसमानी आफतों ने रचाई तबाही, मौत और विनाश की डरावनी दास्तान

विशेष रिपोर्ट | देहरादून (उत्तराखंड)

उत्तराखंड एक बार फिर कुदरत के कहर का शिकार हुआ है। मंगलवार को उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में बादल फटने से भीषण तबाही मच गई। दर्जनों घर, होटल और होम स्टे मलबे में तब्दील हो गए। घटना के वीडियो सामने आने के बाद पूरा देश दहल उठा है। इस भीषण हादसे में अब तक 5 शव बरामद किए जा चुके हैं, जबकि 100 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं। राहत और बचाव कार्य जारी है। सेना के 10 जवानों के भी लापता होने की पुष्टि हुई है।

धराली की यह घटना पहली नहीं है, जब उत्तराखंड की पहाड़ियां आसमानी आफत की चपेट में आई हों। पिछले दो दशकों में प्राकृतिक आपदाओं की एक लंबी और भयावह श्रृंखला ने राज्य को बार-बार झकझोरा है। मौत और मलबे की यह कहानी 2004 से लगातार जारी है, जो 2025 तक आते-आते और भी भयावह होती जा रही है।


🔴 2004 से शुरू हुआ कहर, 2013 की त्रासदी बनी काल का सबसे बड़ा चेहरा

6 जुलाई 2004 को चमोली जिले के बद्रीनाथ क्षेत्र में बादल फटने से 17 लोगों की मौत हुई थी और करीब 5,000 तीर्थयात्री फंस गए थे। यह घटना उत्तराखंड की सबसे पहली बड़ी प्राकृतिक आपदा मानी गई।

3 अगस्त 2012, उत्तरकाशी जिले में अस्सी गंगा क्षेत्र में बादल फटने से 35 लोगों की जान गई। इसके बाद 13 सितंबर 2012 को रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ में बादल फटा और 69 लोग मारे गए

लेकिन असली तबाही आई 16 जून 2013 को, जब केदारनाथ में चौराबाड़ी झील के फटने से आई बाढ़ ने पूरा शहर निगल लिया। इस त्रासदी में 6,054 लोगों की मौत की पुष्टि हुई थी। हजारों लापता हो गए, कई शव आज तक नहीं मिले। यह आपदा आज भी उत्तराखंड के इतिहास में सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी के रूप में दर्ज है।


🔴 2016 से 2023 तक: मौत का मंजर हर साल दोहराया गया

1 जुलाई 2016 को पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट में बादल फटने से 22 लोग मारे गए
14 अगस्त 2017, धारचूला के सिमखोला और मालपा गाड़ क्षेत्र में बाढ़ से 27 लोगों की मौत हुई।
12 अगस्त 2019, चमोली के घाट क्षेत्र में बादल फटा और 6 लोगों की मौत हुई।
18 अगस्त 2019, उत्तरकाशी के मोरी ब्लॉक में 21 लोग मारे गए

2020 में भी कहर जारी रहा—19 जुलाई को मदकोट में 3, 20 जुलाई को टांगा गांव में 11 और 18 अगस्त को मोरी गांव में 12 लोगों की मौत हुई।


🔴 2021: चमोली में फिर मची तबाही, 204 मौतों का दर्द

7 फरवरी 2021, चमोली जिले की ऋषि गंगा घाटी में ग्लेशियर टूटने से जल प्रलय आया। इस आपदा में 204 लोगों की मौत हुई, जिनमें से केवल 80 शव बरामद हो सके और 124 आज भी लापता हैं
18 जुलाई 2021, उत्तरकाशी में मांडो गदेरा के उफान से 4 लोग मारे गए।
30 अगस्त 2021, धारचूला के जुम्मा गांव में 7 लोगों की मौत हुई।


🔴 2022–2023: राहत नहीं, सिर्फ तबाही की नई खबरें

20 जुलाई 2022, चमोली की फूलों की घाटी में बाढ़ आई, 163 पर्यटक फंस गए थे।
नवंबर 2023, उत्तरकाशी के सिलकराया टनल में 47 मजदूर फंस गए थे, जिनका रेस्क्यू अभियान कई दिनों तक चला।


📍अब 2025 की धराली त्रासदी: राहत कार्यों की असली परीक्षा

2025 की शुरुआत ही धराली गांव की विनाशलीला से हुई है। 100 से ज्यादा लोग लापता हैं। सेना के 10 जवानों का पता नहीं चला है। यह सवाल अब गूंज रहा है कि क्या उत्तराखंड आपदा से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार है?


उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति इसे संवेदनशील बनाती है, लेकिन लगातार हो रही तबाही यह भी बताती है कि आपदा प्रबंधन, पूर्व चेतावनी प्रणाली और राहत तंत्र में अभी भी भारी खामियां हैं। सवाल यह भी है कि क्या पर्यटन, विकास और जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा उत्तराखंड भविष्य में ऐसी आपदाओं से उबरने में सक्षम होगा?


निष्कर्ष:
उत्तराखंड की पहाड़ियां अब केवल देवभूमि ही नहीं, बल्कि कुदरत के रौद्र रूप की भूमि भी बनती जा रही हैं। हर साल मौत, मलबा और मातम की कहानी दोहराई जा रही है। धराली की यह हालिया त्रासदी हमें फिर से चेतावनी देती है—अगर समय रहते चेतावनी, सुरक्षा और सतत विकास पर काम नहीं हुआ, तो आने वाले वर्षों में ये घटनाएं और विनाशकारी हो सकती हैं।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Don`t copy text!