अलविदा दिशोम गुरुजी शिबू सोरेन: संघर्षों से भरा जीवन, झारखंड आंदोलन के सूत्रधार, तीन बार बने मुख्यमंत्री लेकिन कभी नहीं पूरा कर सके कार्यकाल

रांची (शिखर दर्शन) // झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। ‘दिशोम गुरुजी’ के नाम से पहचाने जाने वाले सोरेन ने 4 जुलाई को दिल्ली के श्री गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे पिछले एक महीने से लाइफ सपोर्ट पर थे और किडनी संक्रमण व ब्रोंकाइटिस से जूझ रहे थे। उनका जीवन आदिवासी समाज के हक और अधिकारों की लड़ाई में संघर्ष और बलिदान की मिसाल रहा।
पिता की हत्या ने मोड़ा जीवन का रास्ता, आंदोलनकारी से बने राजनेता
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नेमरा गांव में हुआ था। महज 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने पिता शोभराम सोरेन को महाजनों के हाथों खो दिया। इस घटना ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया और उन्होंने पढ़ाई छोड़कर महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। वर्ष 1970 में उन्होंने धान कटनी आंदोलन की शुरुआत की और आदिवासियों के शोषण के खिलाफ मुखर हुए।

झारखंड आंदोलन के अगुआ: झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना
1971 में बांग्लादेश की आज़ादी से प्रेरित होकर शिबू सोरेन ने 4 फरवरी 1972 को कॉमरेड ए.के. राय और विनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर एक राजनीतिक संगठन बनाया — झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM)। इस संगठन ने बिहार से अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन को तेज कर दिया। दो दशकों की लड़ाई के बाद साल 2000 में उनका सपना साकार हुआ और झारखंड को एक अलग राज्य का दर्जा मिला।
तीन बार मुख्यमंत्री, लेकिन एक बार भी नहीं कर सके कार्यकाल पूरा
शिबू सोरेन को तीन बार झारखंड का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला:
- 2 मार्च 2005 को पहली बार CM बने लेकिन बहुमत साबित न कर पाने के कारण 10 दिन में इस्तीफा देना पड़ा।
- 27 अगस्त 2008 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने लेकिन विधायक न होने के कारण उन्हें छह महीने में चुनाव जीतना था।
उन्होंने तमाड़ सीट से उपचुनाव लड़ा लेकिन हार गए, जिससे 18 जनवरी 2009 को इस्तीफा देना पड़ा। - 30 दिसंबर 2009 को तीसरी बार मुख्यमंत्री बने लेकिन यह कार्यकाल भी 31 मई 2010 तक ही चला।
तीनों कार्यकाल मिलाकर शिबू सोरेन ने सिर्फ 10 महीने 10 दिन ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली।
केंद्र में भी बने मंत्री, लेकिन विवादों के चलते देना पड़ा इस्तीफा
शिबू सोरेन यूपीए-1 सरकार में कोयला मंत्री भी रहे, लेकिन उन्हें कानूनी विवादों और राजनीतिक परिस्थितियों के चलते मंत्री पद से भी इस्तीफा देना पड़ा।

एक आंदोलनकारी से आदिवासी समाज के मसीहा तक का सफर
शिबू सोरेन का जीवन केवल एक राजनेता का नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी, समाजसुधारक और आदिवासी हितों के रक्षक का रहा। उन्होंने अपने संघर्षों से झारखंड के आदिवासियों को पहचान दिलाई और उन्हें राजनीतिक मंच पर सशक्त किया। उनकी विरासत को अब उनके बेटे हेमंत सोरेन आगे बढ़ा रहे हैं।
शिबू सोरेन की यात्रा यह सिखाती है कि व्यक्तिगत त्रासदी भी किसी को समाज परिवर्तन का वाहक बना सकती है। झारखंड की आत्मा में उनका नाम सदैव अमर रहेगा।