रिटायरमेंट के बाद भी शिक्षा सेवा में जुटे रतन गुरुजी: 11 वर्षों से बिना वेतन बच्चों को पढ़ा रहे हैं, लक्ष्य – 9 माह में सिखाना पढ़ना-लिखना

बिलासपुर (शिखर दर्शन) //
जहां अधिकतर लोग सेवानिवृत्ति के बाद आराम की जिंदगी जीने का सपना देखते हैं, वहीं बिलासपुर के एक शिक्षक ने इसे बच्चों के भविष्य निर्माण का अवसर बना लिया। ग्राम खजुरी निवासी सेवानिवृत्त प्रधानपाठक करमू सिंह रतन (Karmu Singh Ratan) पिछले 11 वर्षों से निःशुल्क शिक्षा देकर समाज में मिसाल पेश कर रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि कक्षा पहली के बच्चे केवल 9 माह में पढ़ना और लिखना सीख जाएं ताकि उनकी नींव मजबूत हो और आगे की पढ़ाई आसान हो जाए।
शिक्षा को मिशन बना चुके हैं रतन गुरुजी
वर्ष 2014 में प्राथमिक शाला खजुरी से प्रधानपाठक पद से सेवानिवृत्त हुए रतन गुरुजी ने रिटायरमेंट के बाद विश्राम करने की बजाय ग्राम सकेती और खजुरी की शासकीय स्कूलों में बच्चों को निःशुल्क पढ़ाना शुरू किया। उनका कहना है कि वे खुद को बच्चों की नींव का पत्थर मानते हैं और चाहते हैं कि शिक्षा की जड़ें मजबूत हों। उनका जोर पढ़ाई को बोझ नहीं, बल्कि सरल और आनंददायक बनाने पर है।
कमजोर आधार बनती है बड़ी चुनौती
रतन गुरुजी ने बताया कि अक्सर यह देखने में आता है कि कक्षा 5वीं और 8वीं के छात्र भी पहली-दूसरी की किताबें नहीं पढ़ पाते, जो कि शिक्षा प्रणाली की गंभीर खामी है। इस चुनौती को उन्होंने व्यक्तिगत मिशन बनाया है और ग्राम स्तर पर तीन साल से अधिक समय से बच्चों को मुफ्त पढ़ा रहे हैं।
नवाचार से आसान बना रहे पढ़ाई
वे कबाड़ से जुगाड़ की तकनीक अपनाकर शिक्षा को रोचक और व्यवहारिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही बस्ते का बोझ कम कर बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं।
मिल चुके हैं कई सम्मान
रतन गुरुजी के कार्यों को सराहना भी मिली है। वर्ष 2013 में तत्कालीन राज्यपाल शेखर दत्त ने उन्हें बालिका शिक्षा में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया था। इसके अलावा पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके द्वारा भी वे शिक्षकीय सेवा के लिए सम्मानित हो चुके हैं।
उद्देश्य – शिक्षा से बदलाव
रतन गुरुजी की शिक्षा पद्धति यह संदेश देती है कि अगर नींव मजबूत हो, तो भविष्य खुद-ब-खुद उज्ज्वल बनता है। आज के समय में जहां शिक्षा भी एक व्यापार बनती जा रही है, वहीं रतन गुरुजी जैसे शिक्षक समाज के लिए प्रेरणा बनकर उभरे हैं।