स्वास्थ्य

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष : “प्रकृति का सम्मान ही भविष्य की सुरक्षा है”

आज 5 जून है—विश्व पर्यावरण दिवस। यह केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक चेतावनी है, एक अवसर है, और सबसे बढ़कर, यह एक ज़िम्मेदारी है। इस दिन पूरी दुनिया उस सबसे मूलभूत सवाल पर चिंतन करती है, जिससे मानव अस्तित्व जुड़ा है—हम अपने पर्यावरण के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं?

इस वर्ष की थीम है “Land restoration, desertification and drought resilience” यानी “भूमि पुनरुत्थान, मरुस्थलीकरण रोकथाम और सूखा प्रतिरोधक क्षमता”। यह विषय विशेष रूप से वर्तमान समय के लिए प्रासंगिक है, जब धरती का एक बड़ा हिस्सा या तो बंजर हो रहा है या फिर सूखे की चपेट में है। जंगल कट रहे हैं, ज़मीन की ऊपज घट रही है, नदियां सूख रही हैं, और मौसम चक्र पूरी तरह असंतुलित होता जा रहा है।

क्यों जरूरी है पर्यावरण संरक्षण ?
पर्यावरण केवल पेड़-पौधों और जानवरों की रक्षा भर नहीं है, यह जीवन के प्रत्येक पहलू से जुड़ा है—स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, कृषि, जल संसाधन, यहां तक कि हमारी सांसें भी। जब हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते हैं, तब उसकी प्रतिक्रिया विनाशकारी होती है—बाढ़, सूखा, महामारी और जलवायु संकट के रूप में। कोविड-19 महामारी ने हमें यह सिखा दिया कि प्रकृति से छेड़छाड़ का खामियाज़ा पूरी मानवता को भुगतना पड़ता है।

भारत की भूमिका और ज़िम्मेदारी
भारत जैसा विशाल जनसंख्या वाला देश, जहां कृषि आज भी मुख्य आधार है, वहां पर्यावरण की रक्षा और पुनर्स्थापन अत्यधिक आवश्यक हो जाता है। सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर “LiFE” (Lifestyle for Environment) जैसी पहलें प्रस्तुत की हैं, जो व्यक्तिगत स्तर पर भी टिकाऊ जीवनशैली को बढ़ावा देती हैं। लेकिन किसी भी नीति की सफलता जनता की जागरूकता और सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है।

हमें क्या करना चाहिए ?
पर्यावरण संरक्षण केवल सरकारों और संस्थानों की जिम्मेदारी नहीं है—यह हर नागरिक का कर्तव्य है।

  • घरों में पानी और बिजली की बचत करें।
  • प्लास्टिक का उपयोग कम करें।
  • अधिकाधिक वृक्षारोपण करें और लगाए गए पेड़ों की देखभाल करें।
  • जैविक और प्राकृतिक उत्पादों को प्राथमिकता दें।
  • बच्चों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता विकसित करें।

अंत में…
प्रकृति हमें जीवन देती है, लेकिन वह हमारी लापरवाही बर्दाश्त नहीं करती। समय रहते चेत जाना ही समझदारी है। विश्व पर्यावरण दिवस केवल भाषणों और औपचारिकताओं का दिन न होकर आत्मचिंतन और सामूहिक प्रयास का दिन बने, तभी इसकी सार्थकता है।

आइए, इस दिन हम केवल एक वादा न करें, बल्कि एक संकल्प लें—“प्रकृति के प्रति हमारी हर क्रिया ऐसी हो, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को और बेहतर बनाए।”

हरियाली ही विकास है, प्रकृति ही भविष्य है।


✍️ लेखक: [ राजेश निर्मलकर , B.J.M.C. (Bachelor of Journalism & Mass Communication), M.M.C.J. (Masters of Mass Communication & Journalism), L.L.B. (Bachelor of Laws) , डायरेक्टर, शिखर दर्शन न्यूज ]

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