दिल्ली

वक्फ संशोधन कानून पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की एंट्री पर जताई आपत्ति

उच्चतम न्यायालय ने कहा— यह मुद्दा गंभीर, लेकिन फिलहाल तत्काल रोक लगाने का आधार नहीं; बंगाल हिंसा पर भी जताई चिंता

नई दिल्ली (शिखर दर्शन) // सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 16 अप्रैल को वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। दो घंटे चली प्रारंभिक सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने फिलहाल कानून के अमल पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन केंद्र सरकार से जवाब तलब करते हुए बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति और बंगाल हिंसा पर गंभीर टिप्पणियां कीं।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी कि नया वक्फ कानून धार्मिक स्वतंत्रता और मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है। उन्होंने कहा कि यह कानून धार्मिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप है और अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जिसमें धार्मिक संस्थाओं को अपने प्रबंधन का अधिकार दिया गया है।

गैर-मुस्लिम सदस्यता पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सिब्बल ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने के प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों में दखल है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पष्ट करने को कहा कि क्या बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या न्यूनतम दो तय की गई है या अधिकतम दो तक सीमित है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने टिप्पणी की कि यह एक गंभीर संवैधानिक प्रश्न है, जिस पर स्पष्टता आवश्यक है।

300 साल पुरानी संपत्तियों पर वक्फ डीड की अनिवार्यता पर सवाल

सिब्बल ने कहा कि नया कानून वक्फ घोषित करने के लिए वक्फ डीड को अनिवार्य करता है, जो व्यवहारिक नहीं है क्योंकि कई वक्फ संपत्तियां 300 साल से भी अधिक पुरानी हैं। इस पर कोर्ट ने पूछा कि रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता में क्या समस्या है। सिब्बल ने जवाब दिया कि वक्फ बाई यूजर की अवधारणा को खत्म करना ऐतिहासिक और धार्मिक वास्तविकताओं की अनदेखी है।

कलेक्टर को निर्णायक भूमिका देने पर आपत्ति

सुनवाई में यह मुद्दा भी उठा कि अब कलेक्टर यह तय करेंगे कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं, और उन्हीं के निर्णय के आधार पर वक्फ की मान्यता मिलेगी। सिब्बल ने कहा कि यह संविधान के खिलाफ है, क्योंकि कलेक्टर सरकार का प्रतिनिधि होता है और वह इस भूमिका में निष्पक्ष नहीं रह सकता।

स्मारक बनाम वक्फ संपत्ति पर न्यायालय की टिप्पणी

CJI संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि यदि कोई संपत्ति पहले से स्मारक घोषित है और बाद में वक्फ घोषित की जाती है, तो उस पर आपत्ति की जा सकती है। लेकिन यदि पहले वक्फ घोषित की गई हो और बाद में स्मारक घोषित की जाए, तो वक्फ की मान्यता बनी रहनी चाहिए।

राज्य को मुस्लिम पहचान तय करने का अधिकार क्यों?

सिब्बल ने वक्फ अधिनियम की धारा 3R पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह अनुचित है कि राज्य यह तय करे कि कोई व्यक्ति मुस्लिम है या नहीं और क्या उसने पिछले 5 वर्षों से इस्लाम का पालन किया है। उन्होंने इसे धार्मिक मामलों में अनुचित सरकारी हस्तक्षेप बताया।

राजनीतिक और धार्मिक संस्थाओं की आपत्ति

इस कानून को लेकर कांग्रेस, जेडीयू, आप, डीएमके और सीपीआई समेत कई दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। साथ ही जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई धार्मिक संगठन और समाजसेवी संस्थाएं भी विरोध जता चुकी हैं।

बंगाल हिंसा पर SG की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा का मुद्दा भी उठा, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई। सॉलिसिटर जनरल (SG) ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि हिंसा का इस्तेमाल किसी कानून पर दबाव बनाने के लिए किया जाए।


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