एम्बुलेंस नहीं मिलने से गई दो जानें: हाईकोर्ट ने रेलवे और स्वास्थ्य विभाग से मांगा जवाब, कहा – यह गंभीर लापरवाही है

छत्तीसगढ़ में एम्बुलेंस सेवा की बदइंतजामी के चलते दो लोगों की जान चली गई। बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर एक कैंसर पीड़ित महिला की मृत्यु के बाद शव को ले जाने एम्बुलेंस समय पर नहीं मिली, जबकि दंतेवाड़ा के गीदम में एक बीमार मरीज को 11 घंटे तक एम्बुलेंस नहीं मिलने से उसकी जान चली गई। इन घटनाओं पर हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और रेलवे को आड़े हाथों लिया है। कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के सचिव और बिलासपुर रेलवे के डीआरएम से जवाब तलब किया है और पूछा है कि ऐसी गंभीर लापरवाहियों के बाद भी व्यवस्था में सुधार के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
बिलासपुर (शिखर दर्शन) // छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य में एम्बुलेंस सेवा की गंभीर लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई है। हाईकोर्ट ने दो घटनाओं का संज्ञान लेते हुए कहा कि जब सरकार मुफ्त एम्बुलेंस सेवा देने का दावा कर रही है, तब भी जरूरतमंदों को समय पर सुविधा क्यों नहीं मिल पा रही है। कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के सचिव और बिलासपुर रेलवे के डीआरएम को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
पहली घटना बिलासपुर रेलवे स्टेशन की है, जहां कैंसर पीड़ित महिला रानी बाई की ट्रेन में मृत्यु हो गई। महिला रायपुर से बिलासपुर होते हुए बुढ़ार जा रही थीं। ट्रेन के बिलासपुर पहुंचने पर महिला के शव को कुली की मदद से स्ट्रेचर में रखकर स्टेशन के गेट नंबर एक तक लाया गया। परिजनों ने पहले से एम्बुलेंस बुलाई थी, लेकिन मौके पर उसका ड्राइवर नदारद था। थोड़ी देर बाद ड्राइवर पहुंचा भी, तो उसने शव को ले जाने से मना कर दिया। इस बीच परिजनों ने अपने परिचितों की मदद से किसी अन्य एम्बुलेंस का इंतजाम किया और एक घंटे बाद शव को स्टेशन से रवाना किया। परिजनों को उसी शाम की ट्रेन पकड़कर बुढ़ार लौटना था, जिससे उन्हें भारी मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ा।
दूसरी घटना दंतेवाड़ा जिले के गीदम क्षेत्र की है, जहां एक गंभीर रूप से बीमार मरीज को 108 एम्बुलेंस सेवा के लिए 11 घंटे तक इंतजार करना पड़ा। परिजन बार-बार 108 सेवा को कॉल करते रहे, लेकिन एम्बुलेंस सुबह के बजाय देर रात पहुंची। इलाज में हुई देरी के कारण मरीज की मौत हो गई। इस घटना से आक्रोशित परिजनों ने अस्पताल परिसर में हंगामा भी किया।
इन दोनों घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने मीडिया रिपोर्ट के आधार पर जनहित याचिका के रूप में स्वत: संज्ञान लिया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि राज्य सरकार योजनाएं भले ही मुफ्त की चला रही हो, लेकिन जब जमीन पर व्यवस्था ही नदारद हो, तो उन योजनाओं का कोई मूल्य नहीं रह जाता। कोर्ट ने कहा कि यह स्वास्थ्य विभाग की गंभीर लापरवाही है कि कैंसर पीड़ित महिला को एम्बुलेंस तक नसीब नहीं हुई और एक अन्य मरीज की जान केवल एम्बुलेंस समय पर न पहुंचने से चली गई।
डिवीजन बेंच ने स्पष्ट रूप से पूछा है कि ऐसी घटनाएं भविष्य में न दोहराई जाएं, इसके लिए सरकार और संबंधित विभागों ने अब तक क्या कदम उठाए हैं, उसकी विस्तृत जानकारी अगली सुनवाई में प्रस्तुत की जाए। कोर्ट ने यह भी पूछा है कि रेलवे स्टेशन पर इमरजेंसी मेडिकल सुविधा, खासकर एम्बुलेंस की सुलभता के लिए क्या व्यवस्था की गई है, और उसमें सुधार की दिशा में क्या योजनाएं बनाई जा रही हैं।
हाईकोर्ट की इस सख्ती के बाद उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार और रेलवे प्रशासन इस संवेदनशील विषय पर गंभीरता से कदम उठाएंगे, ताकि भविष्य में किसी को इस तरह की तकलीफ का सामना न करना पड़े।