महावीर जयंती विशेष: वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी जरूरत है ‘अहिंसा परमो धर्म’

अहिंसा ही शांति का आधार: भगवान महावीर स्वामी की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक

वर्तमान विश्व जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें सबसे बड़ी आवश्यकता शांति की है — और यह शांति बिना अहिंसा के संभव नहीं। भारत ने प्राचीन काल से लेकर अब तक विश्व को यही संदेश देने की कोशिश की है कि “अहिंसा परमो धर्मः”, अर्थात् अहिंसा ही परम धर्म है।
भारत में जन्मे महापुरुषों ने हर युग में यही सिखाया है कि संवेदनशीलता और करुणा के बिना अहिंसा को समझना संभव नहीं। एक हिंसक मनुष्य कभी इस मूल्य की गहराई को आत्मसात नहीं कर सकता। ‘अहिंसा’ शब्द छोटा जरूर है, लेकिन उसका अर्थ और प्रभाव अत्यंत व्यापक है।
आज जब विश्व के कई हिस्से युद्ध, अशांति और हिंसक प्रवृत्तियों से ग्रस्त हैं, भारत से अहिंसा का यह शाश्वत संदेश पुनः वैश्विक स्तर पर प्रसारित हो रहा है। यह सत्य स्थापित हो चुका है कि हिंसा केवल विनाश का कारण बनती है — चाहे वह राष्ट्र हो, समाज हो या परिवार। इसके विपरीत, अहिंसा जीवन को एक सुंदर और समरस रूप देती है।
भगवान महावीर स्वामी द्वारा दिखाया गया मार्ग आज भी उतना ही स्पष्ट, सत्य और प्रासंगिक है जितना उनके समय में था। अहिंसा जीवन का मूल मंत्र है। किंतु आज भी बहुत से लोग इस बात को नहीं समझते कि हिंसा केवल शारीरिक नहीं होती। सूक्ष्म हिंसा के अनेक रूप हैं — जैसे शब्दों से किसी को अपमानित करना, मूक पशुओं पर अत्याचार, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना या व्यर्थ समय गवाकर अपने आत्मबल को कमजोर करना।
यदि हम किसी सामाजिक बुराई का मौन समर्थन करते हैं, तो वह समाज के प्रति हमारी हिंसा है। यदि हम अनावश्यक मोबाइल का उपयोग कर अपने परिवार और स्वयं की उपेक्षा करते हैं, तो यह आत्मिक और पारिवारिक हिंसा है। एक घास का पौधा भी यदि बिना कारण उखाड़ा जाए, तो वह प्रकृति के प्रति हिंसा मानी जाती है।
महावीर जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्ममंथन का अवसर है — यह सोचने का समय है कि हम आधुनिक जीवन की दौड़ में कितने हिंसक हो गए हैं और कैसे इस हिंसा को समझकर कम किया जा सकता है। इस दिन हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने विचार, आचरण और कर्मों में अहिंसा को अपनाएंगे और जीवन में लोभ की जगह त्याग का समावेश करेंगे।
भगवान महावीर की वाणी आज भी उतनी ही जीवंत है — ‘अहिंसा ही धर्म है, बाकी सब अधर्म के मार्ग हैं।’