छत्तीसगढ़ में बसी जैन परंपरा की समृद्ध विरासत: धर्म, इतिहास और कला का अद्भुत संगम

रायपुर (शिखर दर्शन) // छत्तीसगढ़ की पावन धरती न केवल प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता से समृद्ध है, बल्कि यह हजारों वर्षों से जैन धर्म की एक मजबूत और गहरी परंपरा की भी साक्षी रही है। यह राज्य प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है, जहां खुदाई में आज भी जैन तीर्थंकरों की दुर्लभ प्रतिमाएं मिलती रहती हैं। पुरातात्विक प्रमाणों और ऐतिहासिक स्थलों की भरमार यहां के धार्मिक महत्व को और अधिक प्रकट करती है।
प्राचीन स्थलों से झांकता समृद्ध इतिहास
छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में ऐसे दर्जनों स्थल हैं जो जैन धर्म की समृद्ध परंपरा और स्थापत्य कला की झलक प्रस्तुत करते हैं।
- राजिम में 1600 वर्ष पुरानी भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा खुदाई में प्राप्त हुई है, जो इस क्षेत्र के धार्मिक इतिहास को प्रमाणित करती है।
- दमऊदरहा (चांपा) को ऋषभ तीर्थ कहा जाता है। यहां सातवाहन काल के शिलालेख और ऋषभदेव की प्राचीन प्रतिमा मिली है।
- अडमार, बिलासपुर से 124 किमी दूर, अष्टभुजी माता मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की 2 फीट ऊंची मूर्ति मौजूद है।
- उदयपुर (अंबिकापुर से 40 किमी) में 17 टीले हैं, जहां प्राचीन जैन मंदिरों के भग्नावशेष और 6वीं शताब्दी की ऋषभदेव की प्रतिमा मिली है।
जैन स्थापत्य और मूर्तिकला के अद्वितीय उदाहरण
- आरंग (रायपुर) में स्थित भांड देवल मंदिर, 9वीं शताब्दी का एक ऐतिहासिक जैन मंदिर है, जिसमें अजीतनाथ, नेमीनाथ और श्रेयांसनाथ की 6 फीट ऊंची काले ग्रेनाइट की प्रतिमाएं विराजमान हैं।
- धनपुर (पेंड्रारोड) में 25 फीट ऊंची शैलोत्कीर्ण ऋषभदेव प्रतिमा और जैन मंदिरों के अवशेष आज भी आस्था और इतिहास की गवाही देते हैं।
- डोंगरगढ़ के चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र में भगवान महावीर की प्राचीन मूर्ति, नवग्रह युक्त प्रतिमाएं और स्थापत्य की भव्यता आज भी मौजूद है।

सांस्कृतिक विरासत का अद्वितीय स्वरूप
- सिरपुर (महासमुंद) में 9वीं शताब्दी की नवग्रह धातु से निर्मित ऋषभदेव प्रतिमा और धार्मिक आयोजन प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध बनाते हैं।
- रतनपुर में कल्चुरी काल की 12वीं शताब्दी की ऋषभदेव प्रतिमा और अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियां पाई गई हैं।
- रामगढ़, ताला, मल्हार, जोगीमठ, और डीपाडीह (सरगुजा) जैसे स्थलों पर भी कई प्राचीन जैन प्रतिमाएं और मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां की जनजातियां आज भी तीर्थंकरों के प्रति श्रद्धा भाव रखती हैं।
अन्य महत्वपूर्ण स्थल जहां बसी है जैन परंपरा की छाप
छत्तीसगढ़ के कई अन्य क्षेत्र — जैसे नेतनगर, नर्राटोला, कुर्रा, बम्हनी, कांकेर, जगदलपुर, गढ़बोदरा, पंडरिया, पेंड्रा, पदमपुर, गुंजी, खरौद, पाली, महेशपुर, शिवरीनारायण, दुर्ग, नगपुरा और भोरमदेव — में भी जैन धर्म की अमिट छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। रायपुर के संग्रहालयों और निजी संग्रहों में सैकड़ों जैन प्रतिमाएं आज भी संरक्षित हैं।