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अंतिम सांस तक जेल की सजा पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली// सुप्रीम कोर्ट यह विचार करेगा कि क्या किसी अपराधी को मरते दम तक कारावास की सजा दी जा सकती है ? सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण और हत्या के जुर्म में जीवन पर्यंत यानी मरते दम तक कारावास काटने की सजा को चुनौती देने वाली एक अपराधी की याचिका पर नोटिस जारी किया है । सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका फतेहगढ़ की सेंट्रल जेल में बंद रामनरेश उर्फ फक्कड़ ने दाखिल की है जिसे मरते दम तक कारावास की सजा दी गई है। उत्तर प्रदेश के इस मामले में निचली अदालत ने रामनरेश को अपहरण और हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई थी , लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपील पर फांसी की सजा उम्र कैद में तब्दील कर दी थी । गत 1 दिसंबर को न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने मरते दम तक कारावास की सजा काट रहे याचिकाकर्ता रामनरेश के वकील ऋषि मल्होत्रा की दलील सुनने के बाद मामले में प्रतिवादी उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया । याचिका में मरते दम तक कारावास की सजा को चुनौती देते हुए कहा गया है कि किसी भी दोषी को उसके प्राकृतिक जीवन तक यानी मरते दम तक कारावास की सजा देने से संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होता है, क्योंकि इसे सुधार की संभावना खत्म हो जाती है अब देखना यह है कि जो लोग सुधार की बातें करते हैं याचिका को लेकर सुधारने की दवाई दी जा रही है उसे याचिका में आरोपी के द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति को भी देखना ज्यादा जरूरी होगा क्योंकि यदि ऐसे ही किसी भी आरोपी को सजा में रियायत दी जाएगी तो अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे इसलिए न्यायालय का उत्तरदायित्व बनता है कि अपराध की प्रकृति व उसकी गंभीरता को ध्यान में रखकर ही रियायत दी जाए ।दूसरी तरफ यदि न्यायलय द्वारा सजा में रियायत दी जाती है तो ऐसे मामलों का न्याय दृष्टांत देकर बार-बार आने वाले समय में अधिवक्ता व्यवसाय करने वाले लोग अपने पक्षकारों के लिए यूं ही न्यायालय का समय बर्बाद करते रहेंगे ।और अपराधियों को कही ना कही उपचार दिलाने की जुगत लगाते दिखेंगे ।

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