हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण मामले में सूरजपुर जिला पंचायत उपाध्यक्ष की याचिका खारिज की
बिलासपुर (शिखर दर्शन) // छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को लेकर सूरजपुर जिला पंचायत उपाध्यक्ष नरेश रजवाड़े द्वारा दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। छत्तीसगढ़ पंचायती राज अधिनियम में संशोधन को चुनौती देने वाली इस याचिका पर मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायाधीश रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की। बेंच ने दोनों पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद मेरिट के आधार पर याचिका खारिज कर दी।
जानिए पूरा मामला
याचिकाकर्ता नरेश रजवाड़े ने अपनी याचिका में कहा था कि छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम की धारा 129(ड.) की उपधारा (03) को विलोपित करते हुए राज्य सरकार ने 3 दिसंबर 2024 को छत्तीसगढ़ पंचायत राज (संशोधन) अध्यादेश जारी किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि यह अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 213 के प्रावधानों के तहत अधिकतम छह महीने तक ही प्रभावी रह सकता है।
याचिका में यह भी दावा किया गया कि 16 जनवरी 2024 से 20 जनवरी 2024 तक चले विधानसभा सत्र में सरकार ने इस अध्यादेश को पारित कराने की बजाय केवल पटल पर रखा, जिससे यह विधिशून्य हो गया। इसके अलावा, 24 दिसंबर 2024 को पंचायत निर्वाचन नियमों में संशोधन को भी अवैधानिक बताया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए दावा किया कि राज्य सरकार ने अध्यादेश को संवैधानिक मान्यता दिलाने में चूक की है।
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन. भारत ने अदालत को बताया कि इस मुद्दे पर 23 जनवरी 2025 को नया अध्यादेश जारी किया गया है। उन्होंने कहा कि यह अध्यादेश आगामी बजट सत्र में विधानसभा पटल पर पेश किया जाएगा और इसे कानून का रूप दिया जाएगा।
राज्य सरकार और याचिकाकर्ता के बीच लंबी बहस
याचिकाकर्ता के वकील शक्तिराज सिन्हा ने दलील दी कि राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम की धारा 129(ड.) की उपधारा (03) को विलोपित करते हुए ओबीसी वर्ग को आरक्षण प्रदान करने के लिए 3 दिसंबर 2024 को संशोधन अध्यादेश जारी किया था। उनका कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 213 के तहत कोई भी अध्यादेश अधिकतम छह महीने तक क्रियाशील रह सकता है, जिसे सरकार ने विधानसभा के पटल पर रखकर पारित नहीं कराया, जिससे यह विधिशून्य हो गया।
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन. भारत ने सरकार का पक्ष रखते हुए बताया कि 23 जनवरी 2025 को नया अध्यादेश जारी किया गया है और इसे आगामी बजट सत्र में विधानसभा पटल पर रखा जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अध्यादेश को संवैधानिक रूप से लागू करने के लिए सभी आवश्यक प्रक्रियाएं पूरी की जा रही हैं।
याचिका में उठाए गए मुद्दे
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि राज्य सरकार ने पांचवी अनुसूची के जिलों में ओबीसी आरक्षण के लिए अध्यादेश लाकर इसे कानून में तब्दील करने की प्रक्रिया में गंभीर चूक की है। उन्होंने यह भी दावा किया कि इस आधार पर पंचायत निर्वाचन नियमों में किया गया संशोधन अवैधानिक है।
कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की दलीलों को गहराई से सुना और पाया कि याचिकाकर्ता के दावों का वर्तमान परिस्थितियों से सीधा संबंध नहीं है। बेंच ने अपने फैसले में कहा कि राज्य सरकार ने अध्यादेश को संवैधानिक प्रक्रिया के तहत बजट सत्र में पेश करने की तैयारी की है। इसके साथ ही अदालत ने मेरिट के आधार पर याचिका खारिज कर दी।
यह निर्णय ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण कानूनी दृष्टांत स्थापित करता है और छत्तीसगढ़ में पंचायती राज व्यवस्था से जुड़े मामलों में राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करता है।
यह फैसला ओबीसी आरक्षण को लेकर राज्य सरकार की नीति और पंचायती राज व्यवस्था के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करता है। अदालत के इस निर्णय से पंचायत चुनाव और ओबीसी आरक्षण से जुड़े विवादों पर प्रभाव पड़ सकता है।