पुणे में गुइलेन-बैरी सिंड्रोम के 8 नए मामले, कुल संख्या 67 तक पहुंची; जानें लक्षण, उपचार और बचाव के तरीके
गुइलेन-बैरी सिंड्रोम (GBS) के आठ नए मामलों ने शहर में चिंता की लहर पैदा कर दी है। अब तक कुल 67 मामले दर्ज किए गए हैं। यह एक दुर्लभ तंत्रिका विकार है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को अपने तंत्रिका तंत्र पर हमला करने के लिए उत्तेजित कर देता है, जिससे कमजोरी और पैरालिसिस जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, समय रहते इलाज से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
पुणे (शिखर दर्शन) // महाराष्ट्र के पुणे में गुइलेन-बैरी सिंड्रोम (GBS) के 8 नए संदिग्ध मामले सामने आए हैं, जिससे जिले में इन मामलों का कुल आंकड़ा 67 हो गया है। स्वास्थ्य विभाग ने मंगलवार को त्वरित प्रतिक्रिया टीम (RRT) का गठन किया है, जो इन मामलों के कारण का पता लगाने का प्रयास कर रही है। GBS एक दुर्लभ ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है, जिसके परिणामस्वरूप मांसपेशियों में कमजोरी, सुन्न हो जाना और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, GBS के मामले संक्रमणों, जैसे कि बैक्टीरिया या वायरल इंफेक्शन, के कारण उत्पन्न हो सकते हैं। हालांकि यह बीमारी महामारी का रूप नहीं ले सकती, बच्चों और वयस्कों दोनों में इसके मामलों की पुष्टि हो रही है। इलाज के बाद अधिकांश मरीज सामान्य हो जाते हैं, हालांकि 13 मरीज अभी वेंटिलेटर पर हैं।
आरआरटी और पुणे नगर निगम (PMC) स्वास्थ्य विभाग ने प्रभावित क्षेत्रों, विशेष रूप से सिंहगढ़ रोड क्षेत्र, में निगरानी बढ़ा दी है। चार विशेष टीमों को इन क्षेत्रों में सर्वेक्षण और जागरूकता फैलाने का कार्य सौंपा गया है।
GBS के लक्षण
GBS के लक्षण आमतौर पर 2-4 सप्ताह के भीतर दिखाई देते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- पैरों और हाथों में कमजोरी और सुन्नता
- चलने में कठिनाई
- संतुलन और समन्वय की समस्या
- आंखों की समस्याएं
- सांस लेने में कठिनाई
GBS का उपचार और बचाव
GBS का उपचार आमतौर पर प्लाज्मा एक्सचेंज या इंट्रावेनस इम्यूनोग्लोबुलिन (IVIG) के जरिए किया जाता है। इसके अलावा, स्पाइनल टैप और न्यूरोफिजियोलॉजिकल परीक्षणों के माध्यम से इसकी पुष्टि की जा सकती है। फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी भी मरीजों को जल्दी स्वस्थ होने में मदद करती है। हालांकि, GBS की पूरी तरह से रोकथाम का कोई निश्चित तरीका नहीं है, लेकिन संक्रमणों से बचाव और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से इसके जोखिम को कम किया जा सकता है।