143 साल पहले महाकुंभ का आयोजन महज 20 हजार रुपये में, अब के खर्च से चौंक जाएंगे आप

आज के समय में इस आयोजन के खर्च में असाधारण वृद्धि
इतिहास में सबसे बड़े आयोजन के लिए 7500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित
कुंभ मेला, सनातन सभ्यता का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व, अब से महज 15 दिन बाद शुरू होने जा रहा है, और इस बार मेले को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इस आयोजन में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं सारी व्यवस्थाओं पर नजर रखे हुए हैं।
अब से पहले महाकुंभ के आयोजनों में खर्च की तुलना करें तो उसमें काफी बदलाव देखा गया है। 1882 में महाकुंभ का आयोजन महज 20 हजार रुपये में हुआ था, जबकि आज के समय में इस मेले की कीमत करोड़ों में है।
1882 से 2025 तक खर्च का उत्थान:
- 1882: महाकुंभ का आयोजन 20 हजार रुपये में हुआ था, जो आज के हिसाब से लगभग 3.6 करोड़ रुपये होता है।
- 1894: 10 लाख श्रद्धालुओं के लिए 69 हजार 427 रुपये (10.5 करोड़ रुपये) खर्च हुए थे।
- 1906: 25 लाख श्रद्धालुओं के लिए खर्च 90 हजार रुपये (13.5 करोड़ रुपये) था।
- 1918: 30 लाख श्रद्धालुओं के स्नान के लिए 1.4 लाख रुपये (16.4 करोड़ रुपये) खर्च हुए।
- 2013: कुंभ का आयोजन 1300 करोड़ रुपये के बजट में हुआ था।
- 2019: अर्धकुंभ के आयोजन में 4200 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
- 2025: इस बार सरकार ने महाकुंभ के लिए 7500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है, और अनुमान है कि 40 से 50 करोड़ श्रद्धालु इसमें भाग लेंगे।
महाकुंभ में इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने के बाद, प्रशासन को सभी व्यवस्थाओं को बड़े स्तर पर सुसंगठित करना पड़ता है। इसके लिए सड़क, सुरक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य जरूरी सुविधाओं पर बड़े पैमाने पर खर्च किया जाता है। यह आयोजन धार्मिक महत्त्व के साथ-साथ आर्थिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण होता है, और सरकार द्वारा इसका बजट लगातार बढ़ाया जा रहा है।