भूविस्थापितों का आंदोलन: SECL मुख्यालय का घेराव, अर्धनग्न प्रदर्शन और खदान बंद की चेतावनी
बिलासपुर ( शिखर दर्शन ) // छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) मुख्यालय के सामने भूविस्थापितों का विरोध तेज हो गया है। कोरबा जिले के कुसमुंडा और गेवरा क्षेत्र से आए सैकड़ों भूविस्थापितों ने अपनी लंबित मांगों और अधिकारों के लिए अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी SECL मुख्यालय के गेट पर धरने पर बैठ गए, और अपनी समस्याओं का समाधान न होने तक संघर्ष जारी रखने की चेतावनी दी।
प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगों में रोजगार, अधिग्रहीत जमीन की वापसी, पुनर्वास और स्थायी बसावट शामिल हैं। छत्तीसगढ़ किसान सभा और भूविस्थापित एकता संघ के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन में आरोप लगाया गया कि SECL ने भूमि अधिग्रहण तो किया, लेकिन प्रभावित लोगों को रोजगार और पुनर्वास के मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
कुसमुंडा और गेवरा के युवा प्रदर्शनकारियों ने बताया कि उनकी ज़मीनें तो SECL द्वारा अधिग्रहित कर ली गईं, लेकिन उनका आजीविका स्रोत समाप्त हो गया है और पुनर्वास योजनाओं का लाभ भी उन्हें नहीं मिल पाया। कई सालों से वादे किए गए थे, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
प्रदर्शनकारियों ने SECL प्रबंधन और सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए जोरदार नारेबाजी की। कई युवाओं ने अपनी आक्रोश व्यक्त करने के लिए अर्धनग्न प्रदर्शन किया और कहा कि यह उनकी तकलीफ और आक्रोश का प्रतीक है।
अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुई, तो प्रदर्शनकारियों ने SECL को चेतावनी दी है कि वे 1 जनवरी से अनिश्चितकालीन खदान बंद आंदोलन शुरू करेंगे। उनका कहना है कि अगर समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो खदान का संचालन ठप कर दिया जाएगा, जिससे SECL को भारी नुकसान हो सकता है।
यह आंदोलन स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक तौर पर भी एक गंभीर विषय बन चुका है। छत्तीसगढ़ किसान सभा और भूविस्थापित एकता संघ ने SECL प्रबंधन पर कड़ा दबाव डाला है और कहा है कि अगर जल्द ही समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो आंदोलन और बड़ा किया जाएगा।
इस बीच, राज्य सरकार और जिला प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार ने SECL पर दबाव बनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।
SECL मुख्यालय के सामने चल रहा यह विरोध प्रदर्शन भूविस्थापितों के अधिकारों की लड़ाई है, जो विकास के नाम पर ज़मीन तो अधिग्रहित कर लेते हैं, लेकिन पुनर्वास और आजीविका की जिम्मेदारी पूरी तरह से नजरअंदाज कर दी जाती है। अब यह देखना होगा कि SECL प्रबंधन और सरकार इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लेती हैं और कब तक आंदोलनकारियों की मांगों को पूरा करने के लिए कदम उठाए जाएंगे।