दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: दलित पुरुष और गैर-दलित महिला की शादी को निरस्त, बच्चों को मिलेगा एससी प्रमाणपत्र

नई दिल्ली ( शिखर दर्शन ) // देश की सर्वोच्च अदालत ने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें दलित पुरुष और गैर-दलित महिला की शादी को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एक गैर-दलित महिला विवाह से अनुसूचित जाति में शामिल नहीं हो सकती। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उनके बच्चों को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र मिलेगा, क्योंकि वे दलित पुरुष से जन्मे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश देते हुए जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, “जन्म के आधार पर जाति तय होती है, विवाह से जाति नहीं बदल सकती।” कोर्ट ने 2018 में इसी मुद्दे पर पहले भी निर्णय दिया था कि केवल यह तथ्य कि महिला का पति अनुसूचित जाति समुदाय से है, उसे अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र नहीं मिल सकता।

इस मामले में, दंपति के 11 वर्षीय बेटे और छह साल की बेटी को एससी जाति का प्रमाणपत्र मिलने का अधिकार दिया गया है। दोनों बच्चे पिछले छह वर्षों से रायपुर में अपनी नाना-नानी के घर पर अपनी गैर-दलित मां के साथ रह रहे थे। अदालत ने कहा कि बच्चों को अनुसूचित जाति के तहत सरकारी शिक्षा और रोजगार के लाभ मिलेंगे, भले ही उनके माता-पिता का तलाक हो चुका है।

कोर्ट ने पति को छह महीने के भीतर बच्चों के लिए अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र प्राप्त करने का आदेश दिया। इसके अलावा, पति को बच्चों की शिक्षा के लिए आवासीय, ट्यूशन और प्रवेश शुल्क सहित सभी खर्चों का भुगतान करने का निर्देश भी दिया गया है।

साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने पति को अपनी पत्नी को रायपुर में एक जमीन का प्लॉट सौंपने का आदेश दिया और अगस्त 2024 तक पति को एक दोपहिया वाहन खरीदने की भी जिम्मेदारी दी।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दंपति द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दायर क्रॉस-FIR सहित अन्य मामलों को खारिज कर दिया और महिला को आदेश दिया कि वह बच्चों के पिता से समय-समय पर मिलने और छुट्टियों में उनके साथ समय बिताने की अनुमति दे।

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के तहत किए गए एक व्यापक हस्तक्षेप का उदाहरण है, जो न केवल वैवाहिक विवादों को सुलझाता है, बल्कि बच्चों के भविष्य और उनके अधिकारों को भी सुनिश्चित करता है।

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