बिलासपुर संभाग

हाई कोर्ट ने शिक्षाकर्मियों के आश्रितों को दी बड़ी राहत, दो महीने में अनुकंपा नियुक्ति देने का आदेश

बिलासपुर ( शिखर दर्शन ) // छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने प्रदेश के मृत शिक्षाकर्मियों के आश्रितों को बड़ी राहत देते हुए 13 सितंबर 2021 को गठित समिति को निर्देश दिया है कि वह दो महीने के भीतर अनुकंपा नियुक्ति के सभी लंबित मामलों का निराकरण कर योग्य आश्रितों को नियुक्ति प्रदान करे।

यह आदेश जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की एकल पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिकाकर्ताओं में खिलेश्वरी साहू, सिद्धार्थ सिंह परिहार, अश्वनी सोनवानी, त्रिवेणी यादव, और बिंद्रा आदित्य शामिल हैं, जिनके पति प्रदेश के विभिन्न जिलों में शिक्षाकर्मी ग्रेड I और III के पदों पर कार्यरत थे। सेवाकाल के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उनके आश्रितों ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था।

विभाग ने योग्यता के अभाव में आवेदन खारिज किए

आश्रितों द्वारा दिए गए अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को विभाग ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि आवेदकों के पास बीएड, डीएड की डिग्री या शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण होने की योग्यता नहीं है। इसके कारण आश्रितों को नौकरी नहीं दी गई।

इस मामले में अधिवक्ता योगेश चंद्रा और सी. जयंत राव के माध्यम से याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में गुहार लगाई। याचिका में तर्क दिया गया कि 13 सितंबर 2021 को विभाग द्वारा एक समिति का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य अनुकंपा नियुक्ति के विवादों का समाधान करना था। लेकिन इस समिति ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है, जिससे आश्रितों को अनावश्यक रूप से लंबा इंतजार करना पड़ा।

कोर्ट का आदेश: दो माह में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करें

कोर्ट ने सुनवाई के बाद समिति को निर्देश दिया कि वह दो महीने के भीतर सभी मामलों का निराकरण कर योग्य आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि विभाग में वर्तमान में शिक्षाकर्मियों के पद उपलब्ध नहीं हैं, तो भी समिति को योग्यता के अनुसार अन्य विकल्पों पर विचार करते हुए नियुक्ति सुनिश्चित करनी होगी।

अधिकारियों को जवाबदेही तय करने का निर्देश

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि समिति के निर्णय में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी और भविष्य में ऐसे मामलों में अनावश्यक विलंब न हो, इसका ध्यान रखा जाए।

हाई कोर्ट के इस फैसले से मृत शिक्षाकर्मियों के आश्रितों में उम्मीद की नई किरण जगी है, जो वर्षों से अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे थे।

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