28 नवंबर विशेष: राजभाषा बनने के 17 साल बाद भी छत्तीसगढ़ी के साथ हो रहा है उपेक्षा और अनदेखी का खेल

छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस विशेष
17 साल बाद भी राजभाषा छत्तीसगढ़ी के अस्तित्व पर संकट – कब मिलेगा न्याय?
छत्तीसगढ़ी: जनभाषा से राजभाषा तक का सफर
28 नवंबर 2007 का दिन छत्तीसगढ़ के लिए ऐतिहासिक था, जब छत्तीसगढ़ विधानसभा ने छत्तीसगढ़ी राजभाषा (संशोधन) विधेयक-2007 पारित कर इसे हिंदी के साथ सरकारी कामकाज की दूसरी भाषा का दर्जा दिया। यह निर्णय छत्तीसगढ़ की 85% जनता की मातृभाषा को पहचान देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था।
छत्तीसगढ़ के लोग अपनी भाषा में न केवल बात करते हैं बल्कि उसी में जीते हैं। वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण हुआ, तब इसका उद्देश्य केवल एक नई राजधानी बनाना नहीं था, बल्कि यहां की भाषा, संस्कृति, और परंपराओं को संरक्षित करना भी था।
राजभाषा का दर्जा, लेकिन व्यवहार में उपेक्षा
राजभाषा घोषित हुए 17 साल बीत चुके हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ी आज भी सरकारी कामकाज से गायब है। सरकारी कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, और प्रशासनिक कामकाज में छत्तीसगढ़ी का इस्तेमाल लगभग न के बराबर है।
हालांकि, राज्य में छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन किया गया है, लेकिन यह आयोग केवल नाम मात्र का रह गया है। अध्यक्ष, सचिव, और अन्य पदाधिकारी सालाना नियुक्त होते हैं, परंतु उनके प्रयास सिर्फ सम्मेलनों और सांस्कृतिक आयोजनों तक सीमित हैं। सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक स्थानों पर छत्तीसगढ़ी भाषा में नामपट्ट और सूचनाएं दुर्लभ हैं, जबकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि स्थानीय भाषाओं को हिंदी और अंग्रेजी के साथ प्राथमिकता दी जाए।
पृथक राज्य आंदोलन का उद्देश्य भूला गया?
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण का उद्देश्य केवल राजनीतिक स्वायत्तता नहीं था, बल्कि यहां की भाषा, लोक संस्कृति, लोक साहित्य, और परंपराओं का संरक्षण भी था।
अंग्रेजी भाषाविद् जार्ज ग्रियर्सन ने 1920 में “ए ग्रामर ऑफ द छत्तीसगढ़ी डायलेक्ट” प्रकाशित कर इसे भाषाई रूप से समृद्ध बताया था। बावजूद इसके, छत्तीसगढ़ी को वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसकी वह हकदार है।
केंद्र के निर्देशों की अनदेखी
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को स्थानीय भाषाओं में बोर्ड, संकेतक, और माइलस्टोन लगाने का निर्देश दिया है। छत्तीसगढ़ की लिपि देवनागरी है, इसके बावजूद राज्य सरकार ने इन आदेशों को नजरअंदाज कर रखा है।
क्या छत्तीसगढ़ी को बचाने के लिए बड़ा आंदोलन जरूरी?
राज्य में कई सामाजिक संगठन अब छत्तीसगढ़ी को बचाने के लिए सड़क पर उतर चुके हैं। यदि समय रहते जनभावनाओं का सम्मान नहीं किया गया, तो यह शांत राज्य अशांत हो सकता है।
भाषा की उपेक्षा = संस्कृति की उपेक्षा
किसी भी राज्य की पहचान उसकी भाषा से होती है। यदि छत्तीसगढ़ी भाषा मर जाएगी, तो यहां की संस्कृति और परंपराएं भी विलुप्त हो जाएंगी।
यक्ष प्रश्न: राजभाषा कब बनेगी सरकारी कामकाज की भाषा?
छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बने 17 साल हो गए हैं, लेकिन अब तक यह सरकारी फाइलों से दूर है। क्या राज्य सरकार इस उपेक्षा को खत्म कर छत्तीसगढ़ी को पढ़ाई-लिखाई और सरकारी कामकाज में जगह देगी, या फिर यह सिर्फ एक सांस्कृतिक प्रतीक बनकर रह जाएगी?
छत्तीसगढ़ के लोग अपनी मातृभाषा और पहचान को बचाने के लिए अब एक नए आंदोलन की ओर देख रहे हैं। क्या सरकार इस चुनौती को समझेगी?
छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस पर यही है सबसे बड़ा सवाल।