भगवान कालभैरव: कौन हैं और कैसे करते हैं बुरी शक्तियों का नाश ?
“आदि काल से पूजित काल भैरव: मृत्यु पर विजय और शनि के प्रकोप से मुक्ति का प्रतीक भैरव जयंती 23 नवंबर को”
“सनातन परंपरा के ‘काशी के कोतवाल’ काल भैरव की आराधना, मृत्यु के भय को हराने और जीवन के कष्टों से मुक्ति का सिद्ध मार्ग”
भगवान काल भैरव की आराधना भारतीय सनातन परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। काल भैरव, जिन्हें मृत्यु, भय और समय पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक माना गया है, का नाम स्वयं काल को भी भयभीत कर देता है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार, “काल” का अर्थ है मृत्यु और अंत, जबकि “भैरव” का अर्थ है वह जो भय को हराता है। इस वर्ष 23 नवंबर, शनिवार को काल भैरव जयंती मनाई जाएगी, जो भगवान भैरव के प्रति श्रद्धा और आस्था का प्रतीक पर्व है।
भगवान काल भैरव को महादेव शिव के गण और देवी पार्वती के अनुयायी के रूप में जाना जाता है। भैरव शब्द के तीन अक्षर – भ, र, और व – में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों का संचार है। इनकी पूजा से व्यक्ति को मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और जीवन के तमाम कष्ट दूर होते हैं। शास्त्रों में भैरव को काशी का कोतवाल माना गया है, और मान्यता है कि बिना भैरवनाथ के दर्शन के काशी विश्वनाथ के दर्शन अधूरे रहते हैं।
काल भैरव का धार्मिक महत्व
हिंदू देवताओं में भगवान भैरव की एक अनोखी भूमिका है। मान्यता है कि उनकी पूजा मात्र से शनि के प्रकोप से राहत मिलती है और साढ़ेसाती, ढैय्या जैसे दोषों से भी मुक्ति पाई जा सकती है। भैरव आराधना का विशेष दिन रविवार और मंगलवार है। पूजा में विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कुत्ते को भोजन कराया जाए, क्योंकि भैरव भगवान का वाहन कुत्ता है। पूजा के दौरान व्यक्ति को जुआ, शराब, सट्टा और अन्य अनैतिक कार्यों से दूर रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त, पूजा से पहले शरीर और मन की पवित्रता बनाए रखना अनिवार्य है।
भैरव जयंती पर पूजा विधि
- भैरव अष्टकम का जाप करने से न केवल दरिद्रता का नाश होता है, बल्कि दुःख-दर्द और बुरी आत्माएं भी दूर रहती हैं।
- काल भैरव की पूजा के लिए “ॐ काल भैरवाय नम:” मंत्र का जाप करें। इससे भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
- भैरव जयंती के दिन आधी रात को भैरव मंदिर जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाएं और भगवान भैरव को नीले फूल अर्पित करें।
काल भैरव की उपासना द्वारा सनातन संस्कृति का संरक्षण होता है और जीवन में संकल्प, शुद्धता और निष्ठा की प्राप्ति होती है।