5वीं कक्षा के छात्र ने भाइयों से मोबाइल को लेकर विवाद के बाद की आत्महत्या
बिलासपुर ( शिखर दर्शन ) // घर में मोबाइल को लेकर भाइयों के बीच विवाद ने एक मासूम की जान ले ली। कक्षा पांचवीं के छात्र ने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इस दौरान, उसके माता-पिता खेत में काम करने गए हुए थे। जानकारी मिलने पर पचपेड़ी पुलिस मौके पर पहुंची और जांच शुरू की। प्रारंभिक जांच से पता चला है कि तीन भाइयों के बीच मोबाइल को लेकर विवाद चलता था, और इसी कारण छात्र ने यह कदम उठाया हो सकता है।
पुलिस को संदेह है कि मोबाइल के विवाद ने इस घटना को जन्म दिया। पुलिस ने मर्ग कायम कर मामले की जांच शुरू कर दी है। पचपेड़ी पुलिस के अनुसार, घटना ग्राम जोंधरा के संतोष केंवट के घर की है। संतोष के तीन बेटे हैं, जिनमें सबसे छोटा बेटा कबीर केंवट (11) कक्षा पांचवीं का छात्र था।
घटना का विवरण
बुधवार की सुबह संतोष केंवट और उनकी पत्नी अपने बच्चों को खाना खिलाकर खेत चले गए। उनका बड़ा बेटा चंद्रप्रकाश और मझला भाई स्कूल चले गए, जबकि कबीर घर पर रुक गया। दोपहर 1:30 बजे चंद्रप्रकाश स्कूल से घर लौटे। उन्होंने देखा कि घर का दरवाजा अंदर से बंद था। जब उन्होंने छोटे भाई कबीर को आवाज दी तो दरवाजा नहीं खोला। चंद्रप्रकाश ने खिड़की से झांककर देखा तो कबीर का शव फंदे से लटका हुआ था। इसके बाद उन्होंने पड़ोसियों को जानकारी दी और कुछ ही समय बाद संतोष और उनकी पत्नी भी घर पहुंचे। पुलिस ने दरवाजा तोड़कर शव को फंदे से उतार लिया और जांच शुरू की।
मनोविज्ञान का प्रभाव और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर माता-पिता की जिम्मेदारी
इस दिल दहला देने वाली घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और उनकी भावनाओं की स्थिति पर माता-पिता और समाज को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों में तनाव, अकेलापन, या किसी भी प्रकार का भावनात्मक आघात गहरे प्रभाव डाल सकते हैं। यह घटनाएं केवल बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होतीं, बल्कि एक बच्चे के मानसिक और भावनात्मक विकास पर भी निर्भर करती हैं।
बाल मनोविज्ञान क्या कहता है?
बाल मनोविज्ञान के विशेषज्ञ बताते हैं कि बच्चों की मानसिक स्थिति पर घर का वातावरण, पारिवारिक संबंध, और उनके साथ बातचीत का बहुत गहरा असर पड़ता है। मोबाइल, सोशल मीडिया, और अन्य उपकरणों के अत्यधिक उपयोग से बच्चों में अकेलापन, अवसाद, और आत्ममूल्यता की कमी हो सकती है। वे खुद को समझ नहीं पाते और छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव का शिकार हो जाते हैं।
कैसे माता-पिता बच्चों को मनोवैज्ञानिक रूप से संभाल सकते हैं?
- संचार और विश्वास: बच्चों से खुलकर बातें करना बहुत ज़रूरी है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद करें, उनके डर, चिंताओं, और भावनाओं को समझें और उन्हें यह महसूस कराएं कि वे अकेले नहीं हैं।
- समय देना: आजकल के व्यस्त जीवन में माता-पिता को बच्चों को पर्याप्त समय देना चाहिए। यह समय उनके साथ खेल, पढ़ाई या बातचीत के रूप में हो सकता है।
- सकारात्मक माहौल बनाना: घर में सकारात्मक और सशक्त माहौल होना चाहिए, जहां बच्चे सुरक्षित और खुश महसूस करें। बच्चों को सिखाना चाहिए कि समस्याएं आती हैं, लेकिन उनका समाधान हमेशा होता है।
- मोबाइल और सोशल मीडिया पर निगरानी: बच्चों के मोबाइल उपयोग और सोशल मीडिया पर निगरानी रखना ज़रूरी है। उन्हें ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में समझाना और यह सुनिश्चित करना कि वे स्वस्थ गतिविधियों में ही भाग लें, बेहद महत्वपूर्ण है।
- मानसिक स्वास्थ्य का समर्थन: अगर किसी बच्चे में मानसिक तनाव के लक्षण दिखें, तो माता-पिता को उसे किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मिलवाना चाहिए। बच्चों की आत्महत्या जैसी घटनाएं अक्सर मानसिक दबाव और एकाकीपन का परिणाम होती हैं, जिन्हें समय रहते पहचाना जा सकता है।
माता-पिता का दायित्व क्या है?
माता-पिता का सबसे बड़ा दायित्व अपने बच्चों को मानसिक रूप से सशक्त और सुरक्षित रखना है। उन्हें यह समझाना कि समस्याओं का समाधान है और जीवन की कठिनाइयों से निपटने के लिए उनके पास समर्थन है। बच्चों को यह सिखाना कि आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं होती, बल्कि यह उनके परिवार और समाज को अपूरणीय नुकसान पहुंचाता है। माता-पिता को यह भी याद रखना चाहिए कि उन्हें अपने बच्चों को सशक्त बनाने के लिए सही मार्गदर्शन और समर्थन देना चाहिए।
समाज को संदेश
यह दुखद घटना हमें यह समझाने का अवसर देती है कि बच्चों की भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज को जागरूक होना चाहिए। माता-पिता, शिक्षक, और समाज के अन्य लोग मिलकर बच्चों के साथ संवाद और मार्गदर्शन की प्रक्रिया को मजबूत करें। बच्चों को आत्मविश्वास और मानसिक संतुलन बनाए रखने की दिशा में यह कदम सबसे अहम हैं, ताकि भविष्य में कोई और परिवार इस प्रकार की अनहोनी से न गुज़रे।