रायपुर संभाग

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में जैव विविधता संरक्षण के दिशा में ऐतिहासिक कदम

रायपुर ( शिखर दर्शन ) // अपने परिवेश के वनों का संरक्षण केवल एक पर्यावरणीय जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। छत्तीसगढ़ को जो नेतृत्व प्राप्त है, वह किसी भी प्रदेश के लिए गर्व की बात हो सकती है। राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ वन विभाग ने हाल ही में एक ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाया है, जिससे राज्य की जैव विविधता के संरक्षण में नई दिशा मिल सकती है। राज्य के विभिन्न पारिस्थितिकीय क्षेत्रों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण वन क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है, और इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय और जैव विविधता के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाना है।

छत्तीसगढ़ की असाधारण जैव विविधता और पारिस्थितिकीय संपत्ति

छत्तीसगढ़, जो देश के सबसे प्राचीन और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न राज्यों में से एक है, प्राकृतिक संसाधनों के मामले में बेहद समृद्ध है। यहां के पहाड़, पठार, मैदान और घने वनों में बसी नदियाँ जैसे महानदी, शिवनाथ, अरपा और इंद्रावती राज्य की भौगोलिक संरचना को अद्वितीय बनाती हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार और वन विभाग द्वारा किए जा रहे प्रयासों से जैव विविधता में महत्वपूर्ण वृद्धि हो रही है। विशेष रूप से, दंतेवाड़ा के बचेली वन क्षेत्र और बीजापुर के गंगालूर के जंगलों का जैव विविधता की दृष्टि से अत्यधिक महत्व है।

दंतेवाड़ा के बचेली वन क्षेत्र का जैव विविधता संग्रहालय के रूप में महत्व

दंतेवाड़ा वन मंडल के बचेली वन क्षेत्र और बीजापुर के गंगालूर तक फैला यह क्षेत्र पारिस्थितिकीय दृष्टि से अत्यधिक समृद्ध और जैव विविधता से भरा हुआ है। यहां पाए गए प्राचीन पौधों की प्रजातियां छत्तीसगढ़ की असाधारण जैव विविधता को उजागर करती हैं। इन दुर्लभ प्रजातियों को खोजने का यह प्रयास एक नई दिशा प्रदान कर रहा है और भविष्य में जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। राज्य सरकार की पहल से इन क्षेत्रों को न केवल वैज्ञानिक अध्ययन के लिए सहायक माना जा रहा है, बल्कि इन्हें एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।

प्राचीन वनस्पतियों की खोज और जैव विविधता संरक्षण में नया अध्याय

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की पहल पर, छत्तीसगढ़ वन विभाग ने इस क्षेत्र में प्राचीन वनस्पतियों का जीता जागता संग्रह ढूंढ निकाला है। इससे न केवल राज्य की जैव विविधता को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि इससे वन अनुसंधान को भी नई दिशा मिल रही है। दंतेवाड़ा क्षेत्र में जो दुर्लभ और प्राचीन वनस्पतियां पाई गई हैं, वह करोड़ों साल पुरानी हैं, और इन्हें खोजने का प्रयास राज्य में जैव विविधता संरक्षण के प्रति सरकार की गंभीर प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

सर्वेक्षण से नई खोज और प्रजातियों का दस्तावेजीकरण

दंतेवाड़ा के बचेली से गंगालूर वन क्षेत्र तक फैले इस विशेष वन क्षेत्र में वन विभाग ने तीन दिवसीय विस्तृत सर्वेक्षण कराया। इस सर्वेक्षण में पर्यावरणविदों, वन अधिकारियों और भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारियों ने भाग लिया और यहां पाए गए दुर्लभ और प्राचीन पेड़-पौधों की प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया। इनमें Tree Fern, ग्नेटम स्कैंडन्स, ज़िज़िफस रूगोसस, एंटाडा रहीडी जैसी प्रजातियां शामिल हैं। यह खोज छत्तीसगढ़ में जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

वन अनुसंधान और इको-टूरिज्म के लिए संभावनाएं

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस विशेष वन क्षेत्र में शोध और अध्ययन के लिए राज्य सरकार से विशेष प्रोत्साहन देने की घोषणा की है। उनका मानना है कि इस क्षेत्र में पाए गए दुर्लभ पेड़ करोड़ों साल पुरानी प्रजातियों से संबंधित हो सकते हैं। इससे न केवल राज्य को पर्यावरण संरक्षण में एक नई पहचान मिलेगी, बल्कि यह क्षेत्र पर्यटन के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन सकता है।

छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों से जैव विविधता का संरक्षण और विकास

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ वन विभाग ने राज्य की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। दंतेवाड़ा के बचेली वन क्षेत्र को पर्यावरणीय और वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है, और इसे इको-टूरिज्म के लिए विकसित करने की योजना बनाई जा रही है। इस विशेष वन क्षेत्र की जैव विविधता को समझने और इसे संरक्षित रखने के लिए वन विभाग द्वारा विस्तृत सर्वेक्षण और अनुसंधान की योजनाएं बनाई जा रही हैं।

नए शोधों और योजनाओं से भविष्य में जैव विविधता संरक्षण की नई दिशा

राज्य सरकार के इन प्रयासों से छत्तीसगढ़ की जैव विविधता को वैश्विक स्तर पर पहचान मिल रही है। सरकार का यह कदम न केवल पर्यावरणीय संरक्षण के लिए महत्व रखता है, बल्कि यह राज्य को जैव विविधता के क्षेत्र में एक नई पहचान दिलाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण है।

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