मूक-बधिर महिला से सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों की याचिका खारिज: हाई कोर्ट ने कहा- ट्रायल कोर्ट के फैसले में कोई त्रुटि नहीं
बिलासपुर ( शिखर दर्शन ) // गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले में मूक-बधिर महिला से सामूहिक दुष्कर्म के पांच आरोपियों की याचिका छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि अपराध के संबंध में निर्णय लेने में ट्रायल कोर्ट ने किसी भी प्रकार की कानूनी या तथ्यात्मक त्रुटि नहीं की है।
जानकारी हो कि 25 अगस्त 2019 की शाम करीब 6-7 बजे मरवाही पुलिस स्टेशन के अंतर्गत बाजार में आरोपियों ने मूक-बधिर पीड़िता को जबरन मोटरसाइकिल से तालाब के पास ले जाकर उससे सामूहिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया था । इस मामले में संजीव कुजूर, सूरज दास समेत पांचों आरोपियों के खिलाफ IPC की धारा 366/34, 342/34 और 376 (डी) के तहत जुर्म दर्ज किया गया ।
जानकारी के मुताबिक, पीड़िता की चाची ने मरवाही पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराया, कि उसका बड़ा भाई उसके घर के पास रहता है, और उसकी 22 वर्षीय बेटी (पीड़िता), जो जन्म से मूक बधिर है, और इशारों के माध्यम से बातचीत करती है जिसे वह उसकी मां समझती है. पीड़िता हमेशा की तरह 25 अगस्त की शाम खाना (भीख) मांगने बाजार गई थी । देर रात 11 बजे के करीब वह रोती हुई घर लौटी , उसने उसे और अपनी मां को इशारे से बताया कि जब वह शाम बाजार से लौट रही थी, पांच लड़कों ने उसे जबरदस्ती मोटरसाइकिल पर बिठाया, उसे तालाब की सीढ़ियों पर ले गए, उसके हाथ-पैर बांध दिए और एक-एक करके उसके साथ बलात्कार किया ।पीड़िता ने चेहरे, पीठ और कमर पर खरोंच के निशान दिखाए, साथ ही प्राइवेट पार्ट में दर्द होने की बात बताई ।इसके बाद पीड़िता की चाची ने पीड़िता और परिजनों के साथ पुलिस स्टेशन में घटना की रिपोर्ट दर्ज कराई थी ।
मामले में आरोपियों को 25 वर्ष की सजा सुनाई गई। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ दंडनीय अपराधों के आरोप में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, मरवाही की अदालत में आरोप पत्र दायर किया था। इसके बाद, 10 दिसंबर 2019 को मामला परीक्षण के लिए अतिरिक्त सत्र न्यायालय को सौंपा गया। ट्रायल कोर्ट के जज ने 2 जनवरी 2020 को आरोपियों पर आईपीसी की धारा 366/34, 342/34 और 376डी के तहत आरोप तय किए। फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर से प्राप्त डीएनए टेस्ट रिपोर्ट भी अदालत में प्रस्तुत की गई। ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को दोषी मानते हुए 25 वर्ष कैद की सजा सुनाई।
वहीं आरोपियों ने खुद को निर्दोष बताते हुए हाईकोर्ट में अपील की थी, जिसे चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डीबी ने खारिज कर दिया । सुनवाई के बाद जजों ने कहा, कि ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ताओं के अपराध के संबंध में निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई कानूनी या तथ्यात्मक त्रुटि नहीं की है. इसके साथ ही अपील खारिज कर दी गई । हाई कोर्ट ने एफएसएल व डीएनए टेस्ट पीड़िता के बयान को सजा के लिए साक्ष्य माना है ।